________________ थी, इसलिए वे सुखपूर्वक वहां पर घूमते रहते थे। उन में ऐसे पशु भी थे जिन का कोई मालिक नहीं था, और ऐसे भी थे कि जिन के मालिक विद्यमान थे। यदि उसको एक प्रकार की गोशाला या पशुशाला कहें तो समुचित ही है। गोमंडप और उस में निवास करने वाले गाय, बलीवर्द, वृषभ तथा महिष आदि के वर्णन से मालूम होता है कि वहां के नागरिकों ने गोरक्षा और पशुसेवा का बहुत अच्छा प्रबन्ध कर रखा था। दूध देने वाले और बिना दूध के पशुओं के पालनपोषण का यथेष्ट प्रबन्ध करना मानव समाज के अन्य धार्मिक कर्तव्यों में से एक है। इस से वहां की प्रजा की प्रशस्त मनोवृत्ति का भी बखूबी पता चल जाता है। "-पासाइए 4-" यहां दिए गए चार के अंक से "-दरिसणिज्जे, अभिरूवे, पडिरूवे-" इन तीन पदों का ग्रहण करना है। इन चारों पदों का भाव निम्नोक्त है "-प्रासादीयः-मनःप्रसन्नताजनकः, दर्शनीयः-यस्य दर्शने चक्षुषोः श्रान्तिन भवति, अभिरूपः-यस्य दर्शनं पुनः पुनरभिलषितं भवति, प्रतिरूप:-नवं नवमिव दृश्यमानं रूपं यस्य-" अर्थात् गोमण्डप देखने वाले के चित्त में प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला था, उसे देखने वाले की आंखें देख-देख कर थकती नहीं थीं, एक बार उस गोमण्डप को देख लेने पर भी देखने वाले की इच्छा निरन्तर देखने की बनी रहती थी, वह गोमण्डप इतना अद्भुत बना हुआ था कि जब भी उसे देखो तब ही उस में देखने वाले को कुछ नवीनता प्रतिभासित होती थी। . बलीवर्द का अर्थ है-खस्सी (नपुंसक) किया हुआ बैल। पड्डिका छोटी गौ या छोटी भैंस को कहते हैं। वृषभ शब्द सांड का बोधक है। जिस का कोई स्वामी न हो वह अनाथ कहलाता है, और स्वामी वाले को सनाथ कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में "णगरगोरूवा" इस पद से तो सामान्य रूप से सभी पशुओं का निर्देश किया है, और आगे के "णगरगाविओ" आदि पदों में उन सब का विशेष रूप से निर्देश किया गया है। - अब सूत्रकार आगे का वर्णन करते हैं, जैसे कि मूल-तत्थ णं हत्थिणाउरे नगरे भीमे नामं कूडग्गाहे होत्था 'अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तस्सणं भीमस्स कूडग्गाहस्स उप्पला नामं भारिया होत्था, अहीण / तते णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अण्णया कयाती आवण्णसत्ता 1. "-अहम्मिए-"त्ति धर्मेण चरति व्यवहरति वा धार्मिकस्तन्निषेधादधार्मिक इत्यर्थः। 2. "-अहीण-" अहीणपडिपुण्णपंचेन्दियसरीरेत्यादि दृश्यमिति वृत्तिकारः। प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [267