________________ दोहलंसि-दोहद के।अविणिजमाणंसि-पूर्ण न होने से। जाव-यावत्। किंकर्तव्यविमूढ हुई मैं! झियामिचिन्तातुर हो रही हूं। तते णं-तदनन्तर / से-वह। भीमे-भीम नामक। कूड-कूटग्राह। उप्पलं भारियंउत्पला भार्या को। एवं वयासी- इस प्रकार कहने लगा। देवाणु० ! हे सुभगे। तुमं-तूं। मा णं-मत। ओहय०-हतोत्साह। जाव-यावत्। झियाहि-चिन्तातुर हो। अहं णं-मैं। तं-उस का। तहा-तथा-वैसे। करिस्सामि-यत्न करूंगा। जहा णं-जैसे। तव-तुम्हारे / दोहलस्स-दोहद की। संपत्ती-संप्राप्ति-पूर्ति / भविस्सइ-हो जाए। ताहिं इट्ठाहि-उन इष्ट वचनों से। जाव-यावत् / समासासेति-उसे आश्वासन देता मूलार्थ-धन्य हैं वे माताएं यावत् उन्होंने ही जन्म तथा जीवन को भली-भांति सफल किया है अथवा जीवन के फल को पाया है जो अनेक अनाथ या सनाथ नागरिक पशुओं यावत् वृषभों के ऊधस्, स्तन, वृषण, पुच्छ, ककुद, स्कन्ध, कर्ण, नेत्र, नासिका, जिव्हा, ओष्ठ तथा कम्बल-सास्ना जो कि शूल्य (शूला-प्रोत), तलित (तले हुए), भृष्ट-भुने हुए, शुष्क (स्वयं सूखे हुए) और लवण-संस्कृत मांस के साथ सुरा, मधु, मेरक, जाति, सीधु और प्रसन्ना-इन मद्यों का सामान्य और विशेष रूप से आस्वादन, विस्वादन, परिभाजन तथा परिभोग करती हुईं अपने दोहद को पूर्ण करती हैं। काश ! मैं भी उसी प्रकार अपने दोहद को पूर्ण करूं। इस विचार के अनन्तर उस दोहद के पूर्ण न होने से वह उत्पला नामक कूटग्राह की पत्नी सूख गई-[रुधिर क्षय के कारण शोषणता को प्राप्त हो गई ] बुभुक्षित हो गई, मांसरहित-अस्थि शेष हो गई अर्थात् मांस के सूख जाने से शरीर की अस्थियां दीखने लग गईं। शरीर शिथिल पड़ गया। तेज-कान्ति रहित हो गई। दीन तथा चिन्तातुर मुख वाली हो गईं। बदन पीला पड़ गया। नेत्र तथा मुख मुरझा गया, यथोचित पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माल्य, अलंकार और हार आदि का उपभोग न करती हुई करतल मर्दित पुष्प माला की तरह म्लान हुई उत्साह रहित यावत् चिन्ता-ग्रस्त हो कर विचार ही कर रही थी कि इतने में भीम नामक कूटग्राह जहां पर उत्पला कूटग्राहिणी थी वहां पर आया और आकर उसने यावत् चिन्ताग्रस्त उत्पला को देखा, देख कर कहने लगा कि हे भद्रे ! तुम इस प्रकार शुष्क, निर्मास यावत् हतोत्साह हो कर किस चिन्ता में निमग्न हो रही हो ? अर्थात् ऐसी दशा होने का क्या कारण है ? तदनन्तर उस की उत्पला नामक भार्या ने उस से कहा कि स्वामिन् ! लगभग तीन मास पूरे होने पर यह दोहद उत्पन्न हुआ कि वे माताएं धन्य हैं कि जो चतुष्पाद पशुओं के ऊधस् और स्तन आदि के लवण-संस्कृत मांस का सुरा आदि के साथ आस्वादनादि करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं। तदनन्तर हे नाथ ! उस दोहद के पूर्ण न होने पर शुष्क और निर्मास यावत् 272 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय . [प्रथम श्रुतस्कंध