________________ शरीरं यस्य स तथा तम्-" अर्थात् उस वध्य पुरुष का शरीर गैरिक-गेरु के चूर्ण से संलिप्त हो रहा है, तात्पर्य यह है कि उस के शरीर पर गेरू का रंग अच्छी तरह मसल रखा है, जो कि दर्शक को "-यह वध्य व्यक्ति है" इस बात की ओर संकेत करता है। __"-वज्झपाणपीयं- वध्य-प्राण-प्रियम्, अथवा बाह्यप्राणप्रियम् वध्या बह्या वा प्राणाः-उच्छ्वासादयः प्रतीताः प्रिया यस्य स तथा तम्-" अर्थात् जिस को वध्य-वधार्ह (मृत्युदण्ड के योग्य). उच्छ्वास आदि प्राण प्रिय हैं, अथवा-उच्छ्वास आदि बाह्य प्राण जिस को प्रिय हैं, तात्पर्य यह है कि वह वध्य पुरुष अपनी चेष्टाओं द्वारा "-मेरा जीवन किसी तरह से सुरक्षित रह जाए-" यह अभिलाषा अभिव्यक्त कर रहा है। वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक जीव ही मृत्यु से भयभीत है। बुरी से बुरी अवस्था में भी कोई मरना नहीं चाहता, सभी को जीवन प्रिय है। इसी जीवन-प्रियता का प्रदर्शन उस वध्य-व्यक्ति द्वारा अपनी व्यक्त या अव्यक्त चेष्टाओं द्वारा किया जा रहा है। "-तिलं-तिलं चेव छिजमाणं-तिल-तिलं चैव छिद्यमानम्-" अर्थात् उस वध्य पुरुष का शरीर तिल-तिल करके काटा जा रहा है, जिस प्रकार तिल बहुत छोटा होता है उस के समान उस के शरीरगत मांस को काटा जा रहा है। अधिकारियों की ओर से जो वध्य व्यक्ति के साथ यह दुर्व्यवहार किया जा रहा है, जहां वह उन की महान् निर्दयता एवं दानवता का परिचायक है, वहां इस से यह भी भलीभांति सूचित हो जाता है कि अधिकारी लोग उस वध्य व्यक्ति को अत्यन्तात्यन्त पीड़ित एवं विडम्बित करना चाह रह हैं। "-काकणिमंसाइं खावियंतं-काकणीमांसानि खाद्यमानम्, काकणीमांसानि तद्देहोत्कृत्त- ह्रस्वमांसखण्डानि खाद्यमानम्, अर्थात्-उस वध्य पुरुष के शरीर से निकाले हुए छोटे-छोटे मांस के टुकड़े उसी को खिलाए जा रहे हैं। अथवा "-कागणी लघुतराणि मांसानि- मांसखण्डानि काकादिभिः खाद्यानि यस्य स तथा तम्-" ऐसी व्याख्या करने पर तो "उस वध्य पुरुष के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े काक आदि पक्षियों के खाद्यभक्षणयोग्य हो रहे हैं" ऐसा अर्थ हो सकेगा। . इस के अतिरिक्त सूत्रकार ने उसे पापी कहा है जो कि उसके अनुरूप ही है। उस की वर्तमान दशा से उस का पापिष्ट होना स्पष्ट ही दिखाई देता है। तथा उसको सैंकड़ों कंकड़ों से मारा जा रहा है अर्थात् लोग उस पर पत्थरों की वर्षा कर रहे थे। इस विशेषण से जनता की उसके प्रति घृणा सूचित होती है। टीकाकार ने "-कक्करसएहिं हम्ममाणं-" के स्थान में "-खक्खरसएहिं हम्ममाणं-" ऐसा पाठ मान कर उस की निम्नलिखित व्याख्या की है 256 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय . [प्रथम श्रुतस्कंध