________________ अमुक स्वर के अमुक समय अलापने से क्या प्रभाव पड़ता है ?-" इन समस्त विकल्पों का बोध हो जाता है। (6) ताल-कला-इस कला के द्वारा संगीत के सात स्वरों (१-षड्ज, २-ऋषभ, ३-गान्धार, ४-मध्यम, ५-पंचम, ६-धैवत, ७-निषाद-के अनुसार अपने हाथ या पैरों की गति को ढोल, मृदंग या तबला पर या केवल ताली अथवा चुटकी बजा कर एवं जमीन पर पैर की डाट लगाकर साधा जाता है। (7) बाजिंत्र-कला-इस कला से संगीत के स्वरभेद और ताल, लाग, डांट आदि की गति को निहार कर बाजा बजाना सीखा जाता है। (8) बांसुरी बजाने की कला-इस कला से बांसुरी और भेरी आदि को अनेकों प्रकार से बजाना सिखाया जाता है। (9) नरलक्षण-कला-इस कला से "-कौन मनुष्य किस प्रकृति वाला है ? कौन मनुष्य किस पद और किस काम के लिए उपयुक्त एवं अनुकूल है ?-" इत्यादि बातें केवल मनुष्य के शरीर और उसके रहन-सहन एवं उसके बोल-चाल, खान-पान आदि को देख कर जानी जा सकती है। (10) नारीलक्षण-कला-इस कला से नारियों की जातियां पहचानी जाती हैं और . किस जाति वाली स्त्री का किस गुण वाले पुरुष के साथ सम्बन्ध होना चाहिए, जिस से उनकी गृहस्थ की गाड़ी सुखपूर्वक जीवन की सड़क पर चल सके। इन समस्त बातों का ज्ञान होता (11) गजलक्षण-कला-इस कला से हाथियों की जाति का बोध होता है और अमुक रंग, रूप, आकार, प्रकार का हाथी किस के घर में आ जाने से वह दरिद्री से धनी या धनी से दरिद्री बन जाएगा, यह भी इसी कला से जाना जाता है। (१२)अश्व-लक्षण-कला-इस कला से घोड़ों की परीक्षा करनी सिखाई जाती है, और श्याम पैर या चारों पैर सफेद जिसके हों ऐसे घोड़ों का शुभ या अशुभ होना इस कला से जाना जा सकता है। (13) दण्डलक्षण-कला-इस कला से किस परिमाण की लम्बी तथा मोटी लकड़ी रखनी चाहिए, राजाओं, मन्त्रियों के हाथों में कितना लम्बा और किस मोटाई का दण्ड होना चाहिए, दण्ड का उपयोग कहां करना चाहिए, इत्यादि बातों का ज्ञान हो जाता है। इस के अतिरिक्त सब प्रकार के कायदे कानूनों की शिक्षा का ज्ञान भी इस कला से प्राप्त किया जाता 228 ] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध