________________ (14) रत्न-परीक्षाकला-इस कला से रत्नों की जाति का, उनके मूल्य का एवं रत्न अमुक पुरुष को अमुक समय धारण करना चाहिए, इत्यादि बातों का ज्ञान हो जाता है। (15) धातुवाद-कला-इस कला से धातुओं के खरा-खोटा होने की पहचान करना सिखाया जाता है। उन का घनत्व और आयतन निकालने की क्रिया का ज्ञान कराया जाता है। अमुक ज़मीन और अमुक जलवायु में अमुक-अमुक धातुएं बहुतायत से बनती रहती हैं और मिलती हैं, इत्यादि अनेकों बातों का ज्ञान इस कला से प्राप्त किया जाता है। (16) मंत्रवाद-कला-इस कला से आठ सिद्धियां और नव निधियां आदि कैसे प्राप्त होती हैं, किस मन्त्र से किस देवता का आह्वान किया जाता है, कौन मन्त्र क्या फल देता है, इत्यादि बातों का ज्ञान प्राप्त होता है। (17) कवित्व-शक्ति कला-इस कला से कविता बनानी आती है तथा उस के स्वरूप का बोध होता है। कवि लोग जो "गागर में सागर" को बन्द कर देते हैं, यह इसी कला के ज्ञान का प्रभाव है। (18) तर्क-शास्त्र-कला-इस कला से मनुष्य जगत के प्रत्येक कारण से उस के कारण का और किसी भी कारण से उस के कार्य को क्रमपूर्वक निकाल सकने का कौशल प्राप्त कर लेता है। इस कला से मनुष्य का मस्तिष्क बहुत विकसित हो जाता है। . (19) नीति-शास्त्र-कला-इस कला से मनुष्य सद् असद् या खरे-खोटे के विवेक का एवं नीतियों का परिचय प्राप्त कर लेता है। नीति शब्द से राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, साधारणनीति और व्यवहारनीति आदि सम्पूर्ण नीतियों का ग्रहण हो जाता है। (20) तत्त्वविचार-धर्मशास्त्र-कला-इस कला से धर्म और अधर्म क्या है, पुण्य पाप में क्या अन्तर है, आत्मा कहां से आती है, और अन्त में उसे जाना कहां है, मोक्षसाधन के लिए मनुष्य को क्या-क्या करना चाहिए, इत्यादि बातों का ज्ञान हो जाता है। ___(21) ज्योतिषशास्त्र-कला-इस कला से ग्रह क्या है, उपग्रह किसे कहते हैं, ये कितने हैं, कहां हैं और कैसे स्थित हैं, ग्रहण का क्या मतलब है, दिन-रात छोटे-बड़े क्यों होते हैं, ऋतुएं क्यों बदलती हैं, सूर्य पृथ्वी से कितनी दूर है, गणित-ज्योतिष और फलित -ज्योतिष में क्या अन्तर है, इत्यादि आकाश सम्बन्धी अनेकों बातों का ज्ञान होता है। . (22) वैद्यकशास्त्र-कला-इस कला से हमारे शरीर की भीतरी बनावट कैसी है, भोजन का रस कैसे और शरीर के कौन से भाग में तैयार होता है, हड्डियां कितनी हैं, उन के टूटने के कौन-कौन कारण हैं, और कैसे उन्हें ठीक किया जाता है, ज्वरादि की उत्पत्ति एवं उस का उपशमन कैसे होता है, इत्यादि बातों का ज्ञान हो जाता है। . प्रथम श्रुतस्कंध] श्री विपाक सूत्रम् / द्वितीय अध्याय [229