________________ छाया-ततः स विजयस्तस्या अम्बा० अन्तिकात् श्रुत्वा तथैव सम्भ्रान्त उत्थायोत्तिष्ठति उत्थाय यत्रैव मृगादेवी तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य मृगां देवीं एवमवदत् देवानु ! तव प्रथमगर्भः, तद् यदि त्वमेतमेकान्तेऽशुचिराशावुज्झसि, ततस्तव प्रजा नो स्थिरा भविष्यन्ति / तेन त्वं एतं दारकं राहस्यिके भूमिगृहे राहसिकेन भक्तपानेन प्रतिजाग्रती 2 विहर ततस्तव प्रजाः स्थिराः भविष्यन्ति। ततः सा मृगादेवी विजयस्य क्षत्रियस्य "तथेति" एतमर्थं विनयेन प्रतिशृणोति, प्रतिश्रुत्य तं दारकं राहस्यिके भूमिगृहे राहसिकेन भक्तपानेन प्रतिजाग्रती विहरति / एवं खलु गौतम! मृगापुत्रो दारकः पुरा पुराणानां यावत् प्रत्यनुभवन् विहरति। पदार्थ-तते णं-तदनन्तर। से विजए-वह विजय नरेश। तीसे-उस। अम्म०-धाय माता के। अंतिते-पास से यह / सोच्चा-सुन कर। तहेव-तथैव अर्थात् जिस रूप में बैठा था उसी रूप में। संभंतेसम्भ्रान्त-व्याकुल हुआ। उट्ठाते-उठकर। उट्टेति-खड़ा होता है। उढेत्ता-खड़ा हो कर। जेणेव-जहां। मियादेवी-मृगादवी थी। तेणेव-वहीं पर। उवागच्छति-आता है। 2 त्ता-आकर। मियं देविं-मृगादेवी को। एवं वयासी-इस प्रकार कहता है। देवाणु०!-हे देवानुप्रिये ! तुझं-तुम्हारा यह। पढमगब्भे-प्रथम गर्भ है। तं जइ णं तुम-इसलिए यदि तुम। एयं-इस को। एगंते-एकान्त। उक्कुरुडियाए-कूड़े कचरे के ढेर पर। उज्झसि-फैंक दोगी। तो णं-तो। तुझ पया-तेरी प्रजा-सन्तति / नो थिरा भविस्संति-स्थिर नहीं रहेगी। तेणं-अतः। तुम-तुम।एयंदारगं-इस बालक को।रहस्सियंसि-गुप्त। भूमिघरंसि-भूमि गृह में। रहस्सितेणं-गुप्त। भत्तपाणेणं-भात, पान-आहारादि से। पडिजागरमाणी-सेवा-पालन-पोषण करती हुई। विहराहि-विहरण करो, समय व्यतीत करो। तो णं-तब। तुझ पया-तुम्हारी प्रजा-सन्तान / थिरास्थिर-चिर स्थायी। भविस्संति-रहेंगी। तते णं-तदनन्तर। सा मियादेवी-वह मृगादेवी। विजयस्सविजय। खत्तियस्स-क्षत्रिय के। एयमटुं-इस कथन को। तहत्ति-स्वीकृति सूचक "तथेति" (बहुत अच्छा) यह कहती हुई। विणएणं-विनय पूर्वक। पडिसुणेति-स्वीकार करती है। 2 त्ता-स्वीकार करके। तं दारगं-उस बालक को। रह-गुप्त। भूमिघर-भूमि गृह में। भत्त-आहारादि के द्वारा। पडिजागरमाणी-पालन पोषण करती हुई। विहरति-समय व्यतीत करने लगी। गोयमा !-हे गौतम ! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। मियापुत्ते-मृगापुत्र नामक। दारए-बालक। पुरा-प्राचीन। पुराणाणं-पूर्व काल में किए हुए कर्मों का। जाव-यावत्। पच्चणुभवमाणे-प्रत्यक्ष रूप से फलानुभव करता हुआ। विहरति-समय बिता रहा है। मूलार्थ-तदनन्तर उस धायमाता से यह सारा वृत्तान्त सुनकर संभ्रांत-व्याकुल से हो विजय नरेश जैसे बैठे थे वैसे ही उठ कर खड़े हो गए और जहां पर मृगादेवी थी वहां इह च यावत्करणात्-"दुच्चिन्नाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं"इति द्रष्टव्यमिति भावः। प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [199