________________ इच्छा से जो कुछ भगवान् से निवेदन किया अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं मूल-मियापुत्ते णं भंते ! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ? ___ छाया-मृगापुत्रो भदन्त ! दारकः इतः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति? कुत्रोपपत्स्यते? . पदार्थ-भंते! हे भगवन् ! मियापुत्ते-मृगापुत्र नामक। दारए-बालक। णं-वाक्यालंकारार्थक है। इओ-यहां से। कालमासे-कालमास मरणावसर में। कालं किच्चा-काल करके। कहिं-कहां। गमिहिति-जाएगा? और / कहिं-कहां पर। उववजिहिति-उत्पन्न होगा? मूलार्थ-हे भगवन् ! मृगापुत्र नामक बालक मृत्यु का समय आने पर यहां से काल कर के कहां जाएगा और कहां पर उत्पन्न होगा? ___टीका-पहली नरक से निकल कर इस नारकीय अवस्था में पड़े हुए मृगापुत्र के आगामी जन्म के सम्बन्ध में गौतम स्वामी की ओर से वीर प्रभु के चरणों में जो प्रश्न किया गया है वह बड़ा ही महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता है। इस प्रकार की दुरवस्था का अनुभव करने वाले जीवों की आगामी जन्मों में क्या दशा होती है, इस विषय का ज्ञान प्राप्त करना मुमुक्षु पुरुष के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना कि वर्तमान से अतीत अवस्था का। तात्पर्य यह है कि जीवों की वर्तमान ऊंच-नीच दशा से उनके पूर्वोपार्जित शुभाशुभ कर्मों का सामान्य रूप से ज्ञान होने पर भी विशेष रूप से ज्ञान प्राप्त करने की अभिलाषा रहती है, किसी प्रकार उसकी पूर्ति हो जाने पर भविष्य की जिज्ञासा तो और भी उत्कट हो जाती है। अर्थात् यदि किसी एक व्यक्ति के पूर्व जन्म का यथावत् वृत्तान्त किसी अतिशय ज्ञानी से प्राप्त हो जाए तो उस व्यक्ति के भविष्य के विषय में अपने आप जिज्ञासा उठती है। जिसकी पूर्ति के लिए अन्त:करण लालायित बना रहता है। सद्भाग्य से उस की पूर्ति हो जाने पर विकास-गामी आत्मा को अपने गन्तव्य मार्ग को परिष्कृत करने-सुधारने का साधु अवसर मिल जाता है। इसी उद्देश्य को लेकर वीर भगवान् से गौतम स्वामी ने मृगापुत्र के आगामी भवों के सम्बन्ध में पूछने का स्तुत्य प्रयत्न किया है। गौतम स्वामी के प्रश्न को सुनकर उसके उत्तर में वीर प्रभु ने जो कुछ फरमाया अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं मूल-गोतमा ! मियापुत्ते दारए छव्वीसं वासातिं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले 202 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध