________________ विनीतता पूर्ण वचनावली को सुनकर भगवान् गौतम स्वामी भी महारानी मृगादेवी के पीछेपीछे चलने लगे। काष्ठशकटी का अनुकर्षण करती हुई मृगादेवी भूमिगृह के पास आई। वहां आकर उसने स्वास्थ्यरक्षार्थ चतुष्पुट-चार पुट वाले (चार तहों वाले) वस्त्र से मुख को बांधा अर्थात् नाक को बान्धा और भगवान् गौतमस्वामी से भी स्वास्थ्य की दृष्टि से मुख के वस्त्र द्वारा मुख नाक बांध लेने की प्रार्थना की, तदनुसार श्री गौतम स्वामी ने भी मुख के वस्त्र से अपने नाक को आच्छादित कर लिया। प्रश्न-जब भगवान् गौतम स्वामी ने मुखवस्त्रिका से अपना मुख बान्ध ही रखा था, फिर उन्हें मुख बान्धने के लिए महारानी मृगादेवी के कहने का क्या अभिप्राय है ? __उत्तर-जैसे हम जानते हैं कि भगवान् गौतम ने मुख-वस्त्रिका से अपना मुख बान्ध ही रखा था, वैसे महारानी मृगादेवी भी जानती थी, इस में सन्देह वाली कोई बात नहीं है, तथापि मृगादेवी ने जो पुनः मुख बान्धने की भगवान से अभ्यर्थना की है, उस अभ्यर्थना के शब्दों को न पकड़ कर उस के हार्द को जानने का यत्न कीजिए। सर्वप्रथम न्यायदर्शन की लक्षणा जान लेनी आवश्यक है। लक्षणा का अर्थ है- 'तात्पर्य (वक्ता के अभिप्राय) की उपपत्ति-सिद्धि न होने से शक्यार्थ (शक्ति-संकेत द्वारा बोधित अर्थ) का लक्ष्यार्थ (लक्षण द्वारा बोधित अर्थ) के साथ जो सम्बन्ध है। स्पष्टता के लिए उदाहरण : लीजिए "गङ्गायां घोषः" इस वाक्य में वक्ता का अभिप्राय है कि गंगा के तीर पर घोष (अभीरों की पल्ली) है, परन्तु यह अभिप्राय गंगा के शक्य रूप अर्थ द्वारा उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि गंगा का शक्यार्थ है-जल-प्रवाह-विशेष / उस में घोष का होना असंभव है, इस लिए यहां गंगा पद से उस का जल-प्रवाह रूप शक्यार्थ न लेकर उस के सामीप्य सम्बन्ध द्वारा लक्ष्यार्थ-तीर को ग्रहण किया जाता है। . इसी प्रकार प्रस्तुत प्रकरण में जो "मुहपोत्तियाए मुहं बंधह" यह पाठ आता है। इस में मुख-शब्द लक्षणा द्वारा नासिका का ग्राहक है-बोधक है। क्योंकि प्रस्तुत प्रसंग में महारानी मृगादेवी का अभिप्राय गौतम स्वामी को दुर्गन्ध से बचाने का है। और यह अभिप्राय मुख के शक्यरूप अर्थ का ग्रहण करने से उत्पन्न नहीं होता है। क्योंकि गन्ध का ग्राहक घ्राण (नाक) है न कि मुख, इस लिए यहां तात्पर्य की उपपत्ति न होने से मुख शब्द द्वारा इस के शक्यार्थ को न लेकर सामीप्यरूप सम्बन्ध लक्ष्यार्थ-नाक ही का ग्रहण करना चाहिए। जो कि महारानी मृगादेवी को अभिमत है। 1. लक्षणा शक्यसम्बन्धस्तात्पर्यानुपपत्तितः (न्यायसिद्धान्तमुक्तावली, कारिका-८२) 146 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध