________________ अधर्मसमुदाचार-अधर्म ही जिसका आचार हो, इसीलिए वह अधर्म से वृत्तिआजीविका को चलाने वाला, दुष्टस्वभावी और व्रतादि से शून्य-रहित होता है। ____ एकादि नामक राष्ट्रकूट विजयवर्द्धमान खेट के अन्तर्गत पांच सौ ग्रामों का शासन अथच संरक्षण करता हुआ जीवन बिता रहा था। मण्डल (प्रान्त विशेष) से आजीविका करने वाले राज्याधिकारी को राष्ट्रकूट कहा जाता है-"राष्ट्रकूटो मण्डलोपजीवी राजनियोगिकः" -वृत्तिकार। "आहेवच्चं जाव पालेमाणे" इस पाठ के "जाव-यावत्" पद से-"पोरेवच्चं, सामित्तं, भट्टित्तं महत्तर-गतं, अणाईसरसेणावच्चं, कारेमाणे"[पुरोवर्तित्वम्, स्वामित्वम्, भर्तृत्वम्, महत्तरकत्वम्, आज्ञेश्वरसैनापत्यं कारयन्] इन पदों का भी संग्रह करना चाहिए। सूत्रकार ने प्रथम राष्ट्रकूट को अधर्मी-धर्मविरोधी कहा है, अब सूत्रकार उसके अधर्ममूलक गर्हित कृत्यों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि एकादि राष्ट्रकूट पांच सौ ग्रामों में निवास करने वाली प्रजा को निम्नलिखित कारणों द्वारा आचार भ्रष्ट, तिरस्कृत, ताड़ित एवं पीड़ित कर रहा था जैसे कि-(१) क्षेत्र आदि में उत्पन्न होने वाले पदार्थों के कुछ भाग को कर-महसूल के रूप में ग्रहण करना (2) करों-टैक्सों में अन्धाधुन्ध वृद्धि करके सम्पत्ति को लूट लेना, (3) किसान आदि श्रमजीवी वर्ग को दिए गए अन्नादि के बदले दुगना, तिगुना कर ग्रहण करना (4) अपराधी के अपराध को दबा देने के निमित्त उत्कोच-रिश्वत लेना / (5) . अनाथ प्रजा की उचित पुकार अपने स्वार्थ के लिए दबा देना, अर्थात् यदि प्रजा अपने हित के लिए कोई न्यायोचित आवाज उठाए तो उस पर राज्य-विद्रोह के बहाने दमन का चक्र चलाना। (6) ऋणी व्यक्ति से अधिक मात्रा में ब्याज लेना (7) निर्दोष व्यक्तियों पर हत्यादि का अपराध लगाकर उन्हें दण्डित करना (8) अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए किसी अयोग्य व्यक्ति को किसी स्थान का प्रबन्धक बना देना, तात्पर्य यह है कि किसी अयोग्य पुरुष को धन लेकर किसी प्रान्त का प्रबन्धक नियुक्त कर देना (9) चोरों का पोषण करना, अर्थात् उन से चोरी करा कर उस में से हिस्सा लेना, अथवा बदमाशों के द्वारा शान्ति स्वयं भंग कराकर फिर सख्ती से नियन्त्रण करना (10) व्याकुल जनता को ठगने के लिए ग्राम आदि को जला देना। (11) मार्ग में चलने वालों को लूटना, अर्थात् पथिकों-मुसाफिरों को मरवा कर उन के धन का अपहरण करना। दुराचारी मनुष्य अपने अचिरस्थायी सुख या स्वार्थ के लिए गर्हित से गर्हित कार्य करने 1. पुरोवर्तित्व-अग्रेसरत्व (मुख्यत्व), स्वामित्व-नायकत्व भर्तृत्व-पोषणकर्तृत्व, महत्तरकत्वउत्तमत्व, आज्ञेश्वर सैनापत्य-आज्ञा की प्रधानता वाले स्वामी की सेना का नेतृत्व करता हुआ। प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [161