________________ (13) कर्ण वेदना-इसका अपर नाम कर्ण शूल है। इस का निदान और लक्षण इस तरह वर्णित किया गया है समीरणः श्रोत्रगतोऽन्यथाचरन्, समन्ततः शूलमतीव कर्णयोः। करोति दोषैश्च यथा स्वमावृतः, स कर्णशूलः कथितो दुरासदः॥१॥ (माधवनिदाने कर्णरोगाधिकारः) अर्थात्-कुपित हुआ वायु कान में दोषों के साथ आवृत्त हो कर कानों में विपरीत गति से विचरण करे तब उस से कानों में जो अत्यन्त शूल-वेदना (दर्द) होती है उसे कर्णशूल कहते हैं। यह रोग कष्ट साध्य बताया गया है। (14) कण्डू-यह उपरोग है और पामाका अवान्तर भेद है। इसी कारण वैद्यक ग्रन्थों में इसका स्वतन्त्र रूप से नाम निर्देश न करके भी चिकित्सा प्रकरण में इसका बराबर स्मरण किया है। (१५)दकोदर-इस का दूसरा नाम जलोदर है और उसका लक्षण यह है स्निग्धं महत्तत्परिवृद्धनाभि-समाततं पूर्णमिवाम्बुना च। यथा दृतिः क्षुभ्यति कंपते च, शब्दायते चापि दकोदरं तत्॥२४॥ (माधवनिदाने उदररोगाधिकारः) अर्थात्-जिस में पेट चिकना, बड़ा, तथा नाभि के चारों और ऊंचा हो और तना हुआ सा मालूम होता तो, पानी की पोट भरी सरीखा दिखाई दे, जिस प्रकार पानी से भरी हुई मशक हिलती है उसी प्रकार हिले अर्थात् जिस तरह मशक में भरा हुआ जल हिलता है उसी प्रकार पेट में हिले, तथा गुड़-गुड़ शब्द करे और काम्पे उस को दकोदर अथवा जलोदर कहते हैं। यह रोग प्रायः असाध्य ही होता है। . (16) कुष्ठ-कोढ़ का नाम है। यह एक प्रकार का रक्त और त्वचा सम्बन्धी रोग है, यह संक्रामक और घिनौना होता है। वैद्यक ग्रन्थों में कुष्ठ रोग के 18 प्रकार-भेद बताए हैं। उन में सात महाकुष्ठ और ग्यारह क्षुद्र कुष्ठ हैं 2 / इन में वात पित्त और कफ ये तीनों दोष . 1. पामा यह क्षुद्रकुष्ठों में परिगणित है, इसका लक्षण यह है - सूक्ष्मा वह्वयः पिटिकाः स्त्राववत्यः पामेत्युक्ताः कण्डूमत्यः सदाहाः अर्थात् -जिस में त्वचा पर छोटी-छोटी स्राव युक्त खुजली सहित दाह वाली अनेक पिटिका-फुन्सियां हों उसे पामा कहते हैं। 2. महाकुष्ठ-(१) कपाल (2) औदुम्बर (3) मण्डल (4) ऋक्षजिव्ह (5) पुंडरीक (6) सिध्म और (7) काकण, ये सात महा कुष्ठ के नाम से प्रसिद्ध हैं। और 11 क्षुद्रकुष्ठ हैं, जैसे किप्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [171