________________ विशेषं-प्रत्यनुभवन् विहरति।न मया दृष्टा नरका वा नैरयिका वा, प्रत्यक्षं खल्वयं पुरुषो नरक-प्रतिरूपिकां वेदनां वेदयति इति कृत्वा मृगां देवीमापृच्छते, आपृच्छ्य मृगाया देव्या गृहात् प्रतिनिष्क्रामति प्रतिनिष्क्रम्य मृगाग्रामान्नगरान् मध्यमध्येन निर्गच्छति, निर्गम्य यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तत्रैवोपागच्छति उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं त्रिरादक्षिण प्रदक्षिणं करोति कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत्एवं खल्वहं युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् मृगाग्रामं नगरं मध्यमध्येनानुप्राविशम्। अनुप्रविश्य यत्रैव मृगाया देव्या गृहं तत्रैवोपागतः। ततः सा मृगादेवी मामायान्तं पश्यति दृष्ट्वा हृष्ट तदेव सर्वं यावत् पूयं च शोणितं चाहरति / ततो ममायमाध्यात्मिकः६ समुद्पद्यत अयं दारकः पुरा यावद विहरति। पदार्थ-तते णं-तदनन्तर / से मियापुत्ते दारए-उस मृगापुत्र बालक ने। तस्स विपुलस्स-उस महान्। असणं-पाण खाइम-साइमस्स-अशन, पान, खादिम और स्वादिम के। गंधेणं- गन्ध से। अभिभूते समाणे-अभिभूत-आकृष्ट तथा। तंसि विपुलंसि-उस महान् / असण-पाण खाइम-साइमंसिअशन, पान, खादिम और स्वादिम में। मुच्छिए-मुर्छित हुए ने। तं विपुलं-उस महान्। असणं ४-अशन, पान, खादिम और स्वादिम का।आसएणं-मुख से।आहारेति-आहार किया, और। खिप्पामेव-शीघ्र ही। विद्धंसेति-वह नष्ट हो गया, अर्थात् जठराग्नि द्वारा पचा दिया गया। ततो पच्छा-तदनन्तर वह / पूयत्ताए य-पूय-पीब और। सोणियत्ताए-शोणित-रुधिर रूप में। परिणामेति-परिणमन को प्राप्त हो गया और उसी समय उस का उसने वमन कर दिया। तं य णं-और उस वान्त / पूयं च-पीब और। सोणियं च पिशोणित-रक्त का भी वह मृगापुत्र / आहारेति-आहार करने लगा, अर्थात् उस पीव और खून को वह चाटने लगा। तते णं-उस के पश्चात्। भगवतो गोतमस्स-भगवान् गौतम के। तं मियापुत्तं दारयं-उस मृगापुत्र बालक को। पासित्ता-देखकर। अयमेयारूवे-इस प्रकार के। अज्झस्थिते ६-विचार। समुप्पजित्थाउत्पन्न हुए।अहोणं-अहो-अहह ! इमेदारए-यह बालक। पुरा-पहले। पोराणाणं-प्राचीन / दुच्चिण्णाणंदुश्चीर्ण-दुष्टता से उपार्जन किए गए। दुप्पडिकंताणं-दुष्प्रतिक्रान्त-जो धार्मिक क्रियानुष्ठान से नष्ट नहीं किए गए हों। असुभाणं-अशुभ। पावाणं-पापमय। कडाणं कम्माणं-किए हुए कर्मों के। पावगंपापरूप। फलवित्तिविसेसं-फलवृत्ति विशेष-विपाक का।पच्चणुभवमाणे-अनुभव करता हुआ। विहरतिसमय व्यतीत कर रहा है। मे-मैंने। णरगा वा- नरक अथवा। णेरइया वा-नारकी। ण दिट्ठा-नहीं देखे। अयं पुरिसे-यह पुरुष-मृगापुत्र। नरयपडिरूवियं-नरक के प्रतिरूप-सदृश। पच्चक्खं-प्रत्यक्ष-रूपेण। वेयणं-वेदना का। वेएति-अनुभव कर रहा है। त्ति कट्ट-ऐसा विचार कर भगवान् गौतम। मियं देविं तादिदुश्चरितहेतुकानाम् दुष्प्रतिक्रान्तानाम्-दुशब्दोऽभावार्थः, तेन प्रायश्चित-प्रतिपत्त्यादिनाऽप्रतिक्रान्तानामनिवर्तितविपाकानामित्यर्थः, अशुभानाम्-असुखहेतूनां, पापानाम् दुष्टस्वभावानाम् कर्मणाम्-ज्ञानावरणादीनाम्, पापकम् अशुभम्, फलवृत्तिविशेष-फलरूपः परिणामरूप: यो वृत्तिविशेष:-अवस्थाविशेषस्तमिति भावः। प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [151