________________ की जा सकी। उन्हीं अशुभ पाप कर्मों का फल प्राप्त करता हुआ यह बालक ऐसा जघन्यतम नारकीय जीवन व्यतीत कर रहा है। भगवान् गौतम के ये विचार उन की मनोगत करुणावृत्ति के संसूचक हैं। उन से यह भली-भांति सूचित हो जाता है कि उनके करुणापूरित हृदय में उस बालक के प्रति कितना सद्भावपूर्ण स्थान है ! उन का हृदय मृगापुत्र की दशा को देखकर पिह्वल हो उठा, करुणा के प्रवाह से प्रवाहित हो उठा। इसीलिए वे कहते हैं कि मैंने नरक और नारकी जीवों का तो अवलोकन नहीं किया किन्तु यह बालक साक्षात् नरक प्रतिरूप वेदना का अनुभव करता हुआ देखा जा रहा है। तात्पर्य यह है कि इसकी वर्तमान शोचनीय दशा नरक की विपत्तियों से किसी प्रकार कम प्रतीत नहीं होती। ___ इस प्रकार विचार करते हुए भगवान् गौतम महाराणी से पूछ कर अर्थात् अच्छा देवी! अब मैं जा रहा हूं, ऐसा उसे सूचित कर उसके घर से चल पड़े और नगर के मध्यमार्ग से होते हुए भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में उपस्थित हुए। वहां उन्होंने दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा कर विधिपूर्वक वन्दना तथा नमस्कार किया, उस के अनन्तर उन से वे इस प्रकार निवेदन करने लगे भगवन् ! आपकी आज्ञानुसार मैं महाराणी मृगादेवी के घर गया, वहां पीव और रुधिर का आहार करते हुए मैंने मृगापुत्र को देखा और देख कर मुझे यह विचार उत्पन्न हुआ कि यह बालक पूर्वकृत अत्यन्त कटुविपाक वाले कर्मों के कारण नरक के समान वेदना का अनुभव करता हुआ जीवन व्यतीत कर रहा है। इत्यादि। - भगवान् गौतम अनगार का अथ से इति पर्यन्त समस्त वृत्तान्त का भगवान् महावीर स्वामी से निवेदन करना उनकी साधुवृत्ति में भारण्ड पक्षी से भी विशेष सावधानी तथा धर्म के मूलस्रोत विनय की पराकाष्ठा का होना सूचित करता है। महापुरुषों का प्रत्येक आचरण संसार के सन्मुख एक उच्च आदर्श का स्थान रखता है। अतः पाठकों को महापुरुषों की जीवनी से इसी प्रकार की ही जीवनोपयोगी शिक्षाओं को ग्रहण करना चाहिए। तभी जीवन का कल्याण संभव हो सकता है। .. "हट्ठः तं चेव सव्वं जाव पूयं च" यहां पठित और "पुरा जाव विहरति" यहां पठित "जाव-यावत्" पद पूर्व के पाठों का बोधक है जिन की व्याख्या पीछे की जा चुकी तदनन्तर गौतम स्वामी ने मृगापुत्र के विषय में जो कुछ पूछा और भगवान् ने उसके उत्तर में जो कुछ कहा, अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं प्रथम श्रुतस्कंध ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [155