________________ उद्यान में पधार गए। जाव-यावद् / परिसा निग्गया-नगर निवासी जनता श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के दर्शनार्थ नगर से निकली। तते णं-तदनन्तर / से विजए खत्तिए-वह विजय नामक क्षत्रिय राजा। इमीसे कहाए लद्धढे समाणे-भगवान् महावीर स्वामी के आगमन वृत्तान्त को जान कर। जहा-जिस प्रकार / कूणिए-कूणिक राजा भगवान् के दर्शनार्थ गया था। तहा निग्गते-उसी प्रकार भगवान् के दर्शनार्थ नगर से चला। जाव पजुवासति-यावत् समवसरण में जाकर भगवान् की पर्युपासना करने लगा। तते णंतदनन्दर। से-वह / जातिअंधे पुरिसे-जन्मान्ध पुरुष / तं महया जणसई च-मनुष्यों के उस महान् शब्द को। जाव-यावत्। सुणेत्ता-सुनकर। तं पुरिसं-उस पुरुष को। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा। देवाणुप्पिया ! -हे देवानुप्रिय ! किण्णं-क्या। अज-आज। मियग्गामे-मृगाग्राम में। इंदमहे इ वाइन्द्रमहोत्सव है। जाव-यावत्। निग्गच्छति-नागरिक जा रहे हैं ? तते णं-तदनन्तर / से पुरिसे-वह पुरुष। तं जाति अंधपुरिसं-उस जन्मान्ध पुरुष को। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा। देवा! हे देवानुप्रिय!। खलु-निश्चय ही। नो इंदमहे जाव निग्गहे-ये लोग इन्द्रमहोत्सव के कारण बाहर नहीं जा रहे हैं किन्तु। देवाणुप्पिया !-हे देवानुप्रिय! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही। समणे जाव विहरति-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधार रहे हैं। तते णं एए जाव निग्गच्छंति-उसी कारण से ये लोग वहां जा रहे हैं / तते णं-तदनन्तर / से-वह। जातिअंधे पुरिसे-जन्मान्ध पुरुष। तं पुरिसं-उस पुरुष को। एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा। देवाणुप्पिया!-हे देवानुप्रिय ! अम्हे वि- हम दोनों भी। गच्छामो-चलते हैं और चल कर। समणं-श्रमण। भगवं-भगवान् की। जाव-यावत् (हम) / पजुवासामो-पर्युपासना-सेवा करेंगे। तते णं-तत्पश्चात् / से-वह / जातिअन्धे पुरिसे-जन्मान्ध पुरुष। दंडएणं-दण्ड द्वारा। पुरतो-आगे को। पगड्ढिजमाणे-ले जाया जाता हुआ। जेणेव-जहां। समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे। तेणेव-वहां पर। उवागते-आ गया। उवागच्छित्ता-वहां आ कर वह / तिक्खुत्तोतीन बार / आयाहिणं पयाहिणं-दक्षिण ओर से आरम्भ करके प्रदक्षिणा (आवर्तन)। करेति-करता है। करेत्ता-प्रदक्षिणा करके। वंदति-वन्दना करता है। नमसति-नमस्कार करता है। वंदित्ता नमंसित्तावन्दना तथा नमस्कार कर के। जाव-यावत्। पज्जुवासति-पर्युपासना-सेवा में उपस्थित होता है। तते णंतत्पश्चात्। समणे-श्रमण भगवान् महावीर। विजयस्स-विजय और। तीसे ब-उस परिषद् के प्रति। धम्ममाइक्खइ-धर्मोपदेश करते हैं। परिसा जाव पडिगया-धर्मोपदेश सुनकर परिषद् चली गई। विजए वि-विजय राजा भी। गए-चला गया। तेणं कालेणं-उस काल में। तेणं समएणं-उस समय में। समणस्स-श्रमण भगवान् महावीर के। जेटे अंतेवासी-प्रधान शिष्य। इंदभूती णामं अणगारे-इन्द्रभूति नामक अनगार। जाव विहरति-यावत् विहरण कर रहे हैं। तते णं-तदनन्तर / से-वे। भगवं भगवान्। गोयमे-गौतम स्वामी। तं-उस। जातिअंधपुरिसं-जन्मान्ध पुरुष को।पासति-देखते हैं। पासित्ता-देखकर। जायसड्ढे-जातश्रद्ध-प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले भगवान् गौतम / जाव-यावत्। एवं वयासी-इस प्रकार बोले। भंते !-हे भगवन् ! अत्थि णं केइ पुरिसे-क्या कोई ऐसा पुरुष भी है, जो कि। जातिअंधे-जन्मांध हो ? जायअन्धारूवे-जन्मान्धरूप हो ? हंता अत्थि-भगवान् ने कहा, हां, ऐसा पुरुष है। भन्ते!-हे भदन्त! कहिं णं-कहां है। से पुरिसे-वह पुरुष, जो कि / जातिअंधे-जन्मान्ध तथा। जायअन्धारूवे-जन्मान्धरूप 126 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध