________________ है। उन के पुनीत कथामृत का पान कर के हमारे विकल हृदयों को पूर्ण शांति मिलेगी। इस प्रकार की विशुद्ध भावना से भावित प्रत्येक नर-नारी एक-दूसरे से आगे निकलने का प्रयत्न कर रहा है। नगर के हर एक विभाग व मार्ग में भी यही चर्चा हो रही है, अर्थात् पुरुषसिंह, पुरुषोत्तम श्री महावीर स्वामी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए आज नगर के बाहर चन्दनपादप उद्यान में पधारे हैं यह हमारे नगर का परम अहोभाग्य है। इस प्रकार जनता आपस में कह रही है। सारांश यह है कि वीर प्रभु के पधारने का सारे नगर में आनन्दमय कोलाहल हो रहा है। _____ दर्शनार्थ जाने वाले सद्गृहस्थों में से कई एक कहते हैं कि हम गृहस्थाश्रम का परित्याग कर अनगार (साधु) वृत्ति को धारण करेंगे। कुछ कहते हैं हम तो देशविरति (श्रावक) धर्म को अंगीकार करेंगे। क्योंकि साधु वृत्ति का आचरण अत्यन्त कठिन है। हम में उस के यथावत् पालन करने की शक्ति नहीं है तथा कितने एक भगवान् की भक्ति के कारण जा रहे हैं। कई एक शिष्टाचार की दृष्टि से पहुंच रहे हैं। तात्पर्य यह है कि नगर के हर एक छोटे-बड़े व्यक्ति के हृदय में भगवान के दर्शन की लालसा बढ़ी हुई है। तदनुसार नागरिक स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त हो, यथाशक्ति वस्त्राभरणादि पहन और सुगन्धित पदार्थों से सुरभित हो कर पृथक्पृथक् यानादि के द्वारा तथा पैदल उद्यान की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। उन का मन वीर प्रभु के चरण कमलों का भुंग बनने के लिए आतुर हो रहा है। पाठक, अभी उस जन्मांध व्यक्ति को भूले न होंगे जो मृगाग्राम में भिक्षावृत्ति के द्वारा अपना जीवन निर्वाह कर रहा है। वह भिक्षार्थ नगर में घूम रहा है। उद्यान की ओर जाने वाले नागरिकों के उत्साहपूर्ण महान् शब्द को सुनकर उस ने अपने साथी पुरुष को पूछा कि महानुभाव! क्या आज मृगाग्राम में कोई इन्द्रमहोत्सव है ? अथवा स्कन्द या रुद्रादि का महोत्सव है ? जो कि ये अनेक उग्र, उग्रपुत्र आदि नागरिक लोग बड़ी सज-धज से आनन्द में विभोर होते हुए चले जा रहे हैं ? यहां पर "जणसदं च जाव सुणेत्ता" इस पाठ में उल्लिखित "जाव-यावत्" पद से औपपातिक सूत्रीय 27 वें सूत्र में पठित पाठ का प्रारम्भिक अंश ग्रहण करना जिस में नगर के उत्साहपूर्ण वातावरण का सुचारु वर्णन है। "इंदमहे इ वा जावनिग्गच्छति" और "इंदमहे जाव निग्गए" इन पाठों के "जावयावत्" पद से श्री राजप्रश्नीय उपांग के उत्तरार्धगत 148 वें सूत्र के प्रारम्भिक पाठ का ग्रहण करना, जिस में इन्द्रमहोत्सव स्कन्दमहोत्सव, रुद्रमहोत्सव, मुकुन्दमहोत्सव इत्यादि 18 उत्सवों का निर्देश किया गया है तथा वहां उद्यान में जाने वाले नागरिकों की अवस्था का भी बड़ा सुन्दर चित्र खींचा है। 130 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध