________________ भरेति 2 त्ता तं कट्ठसगडियं अणुकड्ढमाणी 2 जेणेव भगवं गोतमे तेणेव उवागच्छति 2 त्ता भगवं गोतमं एवं वयासी-एह णं तुब्भे भंते ! ममं [ मए सद्धिं ] अणुगच्छह जा णं अहं तुब्भं मियापुत्तं दारयं उवदंसेमि।तते णं से भगवं गोतमे मियं देविं पिट्ठओ समणुगच्छति। तते णं सा मियादेवी तं कट्ठसगडियं अणुकड्ढमाणी 2 जेणेव भूमिघरे तेणेव उवागच्छति 2 चउप्पुडेणं वत्थेणं मुहं बंधमाणी भगवं गोतमं एवं वयासी-तुब्भे वि य णं भंते! 'मुहपोत्तियाए मुहं बन्धह। तते णं भगवं गोतमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधति।तते णं सा मियादेवी परं मुही भूमिघरस्स दुवारं विहाडेति। तते णं गंधो निग्गच्छति।से जहा नामए अहिमडे इ वा जाव ततो वि यणं अणि?तराए चेव जाव गंधे पण्णत्ते। छाया-ततो भगवान् गौतमो मृगां देवीमेवमवदत्-एवं खलु देवानुप्रिये ! मम धर्माचार्यः श्रमणो भगवान् यावत्, ततोऽहं जानामि / यावच्च मृगादेवी भगवता गौतमेन सार्द्धमेतमर्थं संलपति तावच्च मृगापुत्रस्य दारकस्य भक्तवेला जाता चाप्यभवत् / ततः सा मृगादेवी भगवन्तं गौतममेवमवादीत्-यूयं भदन्त ! इहैव तिष्ठत, यावदहं युष्मभ्यं मृगापुत्रं दारकमुपदर्शयामि, इति कृत्वा यत्रैव भक्तपानगृहं तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य ____उत्तर - शास्त्रों में व्यवहार पांच प्रकार के कहे गए हैं। (1) आगम, (2) श्रुत, (3) आज्ञा, (4) धारणा और (5) जीत। मोक्षाभिलाषी आत्मा की प्रवृत्ति का नाम व्यवहार है। केवलज्ञानी, मन:पर्यायज्ञानी, अवधिज्ञानी. चतुर्दशपूर्वी दशपूर्वी और नवपूर्वी की प्रवृत्ति को आगम व्यवहार कहा.गया है। आगम-व्यवहारी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसारी होते हैं। इन पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होता है। आगम व्यवहार के अभाव में शास्त्रों के अनुसार प्रवृत्ति करने वाले श्रुत व्यवहारी होते हैं। इनके लिए मात्र शास्त्रीय मर्यादा ही मार्ग दर्शिका होती है। जहां शास्त्र मौन है, वहां द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावानुसारी गुरु आदि द्वारा दिया गया आदेश आज्ञा-व्यवहार है। आज्ञा-व्यवहारी को गुरु चरणों द्वारा सम्प्राप्त आज्ञा का ही अनुसरण करना होता है। आज्ञा व्यवहार की अनुपस्थिति में गुरु परम्परा से चलित व्यवहार का नाम धारणा व्यवहार है। धारणा-व्यवहारी को पूर्वजों की धारणा के अनुसार ही प्रवृत्ति करनी पड़ती है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और संहनन आदि का विचार कर गीतार्थ मुनियों द्वारा निर्धारित व्यवहार जीत व्यवहार होता है। जीत व्यवहारी के लिए अतीत समाचारी मान्य होने पर भी वर्तमान संघसमाचारी का पालन करना आवश्यक होता है। भगवान गौतम आगम व्यवहारी थे। आगमव्यवहारियों पर श्रुत व्यवहार लागू नहीं होता। अतः भगवान गौतम का महारानी मृगादेवी से किया गया संलाप आदि शास्त्र विरुद्ध नहीं है। 2. मुखपोतिका-मुखप्रोञ्छनिका, रजः प्रस्वेदादि-प्रोञ्छनार्थ यद् वस्त्रखण्डं हस्ते ध्रियते सा मुखप्रोञ्छनिकेत्युच्यते। 142 ] श्री विपाक सूत्रम् / प्रथम अध्याय [प्रथम श्रुतस्कंध