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स्थानास्त्रे 'इइस्थे ' इत्यस्य ' इहाऽऽस्थः' इतिच्छाया, तत्पक्षे -इहास्थ इत्यस्य इहैव जन्मनि आस्था-विश्वासो यस्य स तथा इहलोकप्रतिबद्धो भवति किन्तु न परार्थ:-परत्र जन्मनि अर्थ:-स्वर्गादिसुखप्रयोजनं यस्य स तथा न भवति, यद्वा-' परत्थे' इत्यस्य 'पराऽऽस्थ' इतिच्छाया, इति पक्षे परत्र आस्था-विश्वासो यस्य स तथा न भवति, स च नास्तिकः । इति प्रथमो भङ्गः । १ । शेपभनत्रयमेवं संयोजनीभोग सुखार्थी होता है यदा-" इहत्थे " शब्दकी छाया " इहस्थः " ऐसी भी होती है इस पक्षमें ऐसा अर्थ होता है-कि कोई एक पुरुष ऐसा होता है कि जिसकी आस्था इसी जन्म पर होती है ऐसा वह ईहार्थ पुरुष " नो परत्थे " परजन्ममें स्वर्गादि सुखका प्रयोजनवाला नहीं होता है अथवा-" परत्थे" की संस्कृत छाया-"परास्थ" ऐसी होगी तप इसका ऐसा अर्थ होगा-कि वह इहास्थ पुरुष परलोकमें विश्वास रखनेवाला नहीं होता है ऐसा वह नास्तिक पुरुष होता है ? शेष ३ भङ्ग इस प्रकारसे बना लेना चाहिये-कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो " परत्थे नो इहत्थे २ " परार्थ या परास्थ होता है इहाथ या इहास्थ नहीं होता है २ कोई एक पुरुप ऐसा होता है जो " इहत्थे परत्ये वि" इहार्थ या इहास्थ भी होता है और परार्थ या परास्थ भी होता है ३ तथा कोई एक पुरुष ऐसा भी होता है जो 'नो इहत्थे नो परत्ये" न इहाथै या इहास्थ होता है और न परार्थ या परास्थ હિતે નથી એવા પુરુષને “ઈહાર્થી–નો પરાથી” રૂપ પહેલા પ્રકારમાં ગણાવી शाय छ अथवा-"ईदस्थे" मा पहनी सकृत छाया " इहस्थः" पर थाय છે. આ સંસ્કૃત છાયાની અપેક્ષાએ પહેલે ભાગે આ પ્રકારને બને છે– કેઈ એક પુરુષ એવો હોય છે કે જે આ જન્મ પરઆસ્થા રાખનારે હોય છે પણ પરભવના સુખાદિમાં આસ્થાવાળો હોતો નથી. એ પુરુષ નાસ્તિક હોય છે. બાકીના ત્રણ ભાંગાઓ આ પ્રમાણે સમજવા–(૨) કેઈ
४ २५ " परस्थे नो इहस्थे" वो डाय छ है २ ५२सना सुमनी અભિલાષા અથવા આસ્થાવાળો હોય છે પણ આ લેકને સુખની અભિલાષા अथवा मास्थावाने जात नथी. (3) " इहत्थे परन्थे वि" मे पुरुष આ લેકના સુખની ઇચ્છા તથા આસ્થાવાળે પણ હોય છે અને પરલેકના सुमनी ५९] छ। मने मास्यावाणी हाय छे. (४)"नो इहत्थे-नो परत्थे" કેઈ એક પુરુષ આલેકના સુખની ઈછા કે આસ્થાવાળે હોતો નથી અને પરલેકના સુખની ઈચ્છા કે આસ્થાવાળે પણ હેતો નથી.