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सुधा टाकी स्था०४ उ०४ सू०१५ क्षदृष्टान्तेन भिक्षाकनिरूपणम् ३४१ किन्तु स नौ परिवजिता-उड्डयनशीलो न भवति वारभावात् , तथा-एकः परिबजिता भवति किन्तु नो निपतिता २, तथा-एकोनिपतिताऽपि परिव्रजिताऽपि च भवति ३। तथा-एको नो निपतिता नापि च परिव्रजिता भवतीति । (३७) । ___ 'एवामेवे ' त्यादि-एवमेव-उक्तपक्षिवदेव भिक्षाकाः-साधवश्चत्वारः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-एको भिक्षाको निपतिता-भिक्षाचर्यायामवतरीता भवति भोजनार्थित्वात् , किन्तु नो परिबजिता-परिभ्रमणशीलो न भवति ग्लानत्वादलसत्त्वाल्लज्जावत्चाद्वा इति प्रथमः।१।
तथा-एकः परिव्रजिता-परिभ्रमणशील आश्रयान्निर्गतः सन् भवति, किन्तु नो निपत्तिता-भिक्षार्थभवतरीता न भवति सूत्रार्थाऽऽसक्तत्वात् इति द्वितीयः२॥ ववाला नहीं होता है, ऐसा वह पक्षी प्रथम भङ्गमें लिया गया है जो उड़नेके स्वभाववाला होता है पर गिरनेके स्वभाववाला नहीं होता है ऐसा वह पक्षी द्वितीय भंगमें लिया गयाहै। जो पक्षी परिव्रजनके स्वभा. ववाला और निपतनके स्वभाववाला होता है वह तृतीय भंगमें लिया गयाहै । तथा जो न निपतनके स्वभाववालो होताहै और न परित्रजनके स्वभाववाला होता है ऐसा वह पक्षी चतुर्थ भंगमें लिया गया है (३७) ___" एवामेव"-इसी प्रकारसे साधु भी चार प्रकारके कहे गये हैं उनमें कोई एक साधु ऐसा भी होता है, जो भोजनार्थी होनेसे भिक्षा चर्या में उतरतातो है, पर वह ग्लान होनेसे . या आलसी होने से या लज्जाशील होनेसे परिभ्रमण नहीं करता है १ कोई एक साधु ऐसा होता है जो परिभ्रमण शील होता है-आश्रयस्थानसे भिक्षाके निमित्त तन मा पi ain (41२wi) गावी शय छे. (२) " परिव्रजिता नो निपतिता" २ ५क्षी 5वाना लावणुडीय छ ५४ ५७वाना स्मा. qatण हानथी ते२ मा भी प्रारभ गावी शाय छे. (3) "निपतिताऽपि परिव्रजिताऽपि" २ पक्षी निगनना मन निपतनना स्वमाथी युत डाय छ तर मात्री १२भा भूडी शय छ (४) "नो निपतिता नो परिव्रजिता" २ पक्षी निपतनना स्वभावामु ५ लातुनथी मने परिधरનના સ્વભાવવાળું પણ હોતું નથી તેને આ ચોથા પ્રકારમાં મૂકી શકાય છે. ક૭
"एवामेव " मे प्रमाणे साधु ५] या२ मारना ४६ छ-(OTS એક સાધુ એ હોય છે કે જે ભેજનાથી હેવાથી ભિક્ષાચર્યામાં ઉતરે છે તે ખરો, પિતાના આશ્રય સ્થાનમાંથી બહાર નીકળે છે તે ખરો, પણ બીમારી, माणस Hornने ४२] परिन (परिश्रम) ४२ नथी. (२) ४ मे સાધુ એ હોય છે કે જે પરિભ્રમણશીલ હોય છે-આશ્રયસ્થાનમાંથી ભિક્ષાને