Book Title: Sthanang Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 541
________________ घाटीका स्था०५ ७० १ सू०८ नरयिकादीनां शरीरानरूपणम् ५२३ पंचवन्ने पंचरसे पण्णत्ते, तं तहा - किण्हे जाव सुकिल्ले, तित्ते जाव महुरे, एवं जात्र कम्मयसरीरे । सोचि णं बादरखोंदिधरो कलेवरा पंचवन्ना पंचरसा दुग्गंधा अट्ठ फासा ॥ सू० ८ ॥ छाया - नैरयिकाणां शरीरकाणि पञ्चवर्णानि पञ्चरसानि प्रज्ञप्तानि तद्यथाकृष्णानि यावत् शुक्लानि, विक्तानि यावत् मधुराणि, एवं निरन्तर यावद् वैमा-निकानाम् । पञ्च शरीरकाणि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - औदारिकम् १, वैक्रियम् २, आहारकम् ३, तैजसम् ४, कर्मजम् ५ । औरारिकशरीरं पञ्चवर्ण पञ्चरसं प्रप्तं, तद्यथा–कृष्णं यावत् शुक्लम्, तिक्तं यावद् मधुरम्, एवं यावत् कर्मशरीरम् | सर्वाण्यपि खलु बादररूपधराणि कलेवराणि पञ्चवर्णानि पञ्चरसानि द्वि गन्धानि अष्टस्पर्णानि ॥ सू० ८ ॥ , टीका -' रहाणं ' इत्यादि - नैरयिकाणाम् = नारकाणां शरीरकाणि कृष्णादिशुक्लान्त पञ्चवर्णमयानि, तिकादि मधुरान्तपश्चरसमयानि च विज्ञेयानि । एवं चतुर्विंशतिदण्डकोक्तानां वैमानिकान्तानां सर्वेषामपि शरीराणि पञ्चवर्णमयानि पञ्चरसमयानि च विज्ञे अब सूत्रकार शरीरकी प्ररूपणा करते हैं, क्योंकि केवलज्ञान और केवलदर्शन नारकादिकोंके वीभत्स आदिरूप शरीरों को देखकर भी क्षुभित नहीं होते हैं, अतः इस प्रकरणको लेकर यह प्ररूपणा की गई है 'रइयाणं सरीरगा पंचवन्ना' इत्यादि सूत्र ८ ॥ टीकार्थ-नैरयिक जीवके शरीर पाँच वर्णवाले एवं पांच रसवाले कहे गये हैं, कृष्णवर्ण से लेकर शुक्लवर्ण तक ५ वर्ण होते हैं, और तिक्त रस से लेकर मधुर रस तक ५ रस होते हैं । इन पांचों वर्णों वाले और पांचों रसवाले नैरयिकों के शरीर होते हैं, ऐसा भगवान् ने कहा है । इसी प्रकार से २४ दण्डकोंमें उक्त वैमानिक तक के समस्त जीवोंके કૈવલજ્ઞાન અને કેવલદેન નાકાદિના ખીભત્સ આદિ રૂપ શરીરને જોઈને પણુ ક્ષુભિત થતાં નથી. આ પ્રકારના પૂર્વસૂત્ર સાથેના સબધને લઈને હવે સૂત્રકાર શરીરાની પ્રરૂપણા કરે છે. टीअर्थ'-" णेरइयाणं सरीरगा पचवन्नी " छत्याहि નારકાનાં શરીર કૃષ્ણાથી લઇને શુકલ પન્તના પાંચ વષુવાળાં અને તિક્ત ( તીખા ) થી લઈને મધુર પર્યન્તના પાંચ રસવાળાં કહ્યાં છે, એ જ પ્રમાણે વૈમાનિક પર્યંતના ૨૪ દૂકાના જીવેાના શરીરા વિષે પણૢ સમજવું.

Loading...

Page Navigation
1 ... 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636