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सुधाटोका स्था०५ उ०१ सू०८ नैरयिकादीनां शरीरनिरूपणम् उक्तंच-जोयणसहस्समहियं, ओहे एगिदिए तरुगणे सु ।
मच्छजुयले सहस्सं, उरगेसु य गम्भजाएसु" ॥१॥ छाया-योजनसहस्रमधिकम् ओधे एकेन्द्रिये तरुगणेषु । ____ मत्स्ययुगले सहस्रमुरगेपु च गर्भजातेषु ॥१॥ इति ।। वैक्रियशरीरस्य लक्षयोजनप्रमाणत्वेऽपि सर्वदाऽवस्थानाभावादिति ॥२॥
अथवा-उरलम्=अल्पप्रदेशोपचितत्वाद् बृहत्वाच्च भिण्डवनिति, तदेव औरालिकम् । प्रयोगसिद्धिस्तु निपातनाद् योध्या। यद्वा-ओरालं-मांसास्थिस्नायबादिमिरवनद्धं, तदेव औरालिकमिति ॥३॥ अवगाहना इसकी उत्कृष्ट कही गई है, अतः इस अपेक्षासे यह औरालिक कहा गया है, और किसी शरीरकी स्थिति ऐसी नहीं है। कहा भी है-" जोयणलहस्समाहियं " इत्यादि । यद्यपि वैशिष शारीर एक लाख योजन प्रमाणवाला हो सकता है, परन्तु इस स्थिति में वह सदा अवस्थित नहीं रहताहै, इसलिये उसका प्रहां प्रहमा नहीं हुआ है अथवा-' उसलमेक औरालिकम् ।” इस व्युत्पत्तिके अनुसार अल्प प्रदेशोंसे उपचित होनेसे और वृहत् होने से भिण्डकी तरह इसे औरालिक कहा गया है " ओरालिक" इस पदकी सिद्धि निपातनले हुई है। अथवा-" औरालमेव औरालिकम्" इस व्युत्पत्तिके अनुसार जो शरीर ओराल होता है, मांस, अस्थि, स्नायु आदिसे बद्ध होना है, वह औरालिक कहा जाता है, पाँच शरीरों में केवल औदारिक शरीरही मांस, अस्थि आदिसे युक्त कहा गयाहै शेष शरीर नहीं । कहा भी हैકહે છે. તેની ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના એક હજાર યોજન કરતાં પણ અધિક કહી છે. આ રીતે આ શરીર બીજા શરીરે કરતાં અધિક અવગાહનોવાળું હોવાથી -तेर मौलि छ { ५ छ 3-" जोयणसहस्समहिय ""त्यादि-'
જો કે વિક્રિય શરીર એક લાખ યોજનાની ઉત્કૃષ્ટ અવગાહનાવાળું હોઈ શકે છે, પરંતુ એવી સ્થિતિમાં તે સદા અવસ્થિત રહેતું નથી, તેથી તેને मडी ए ४२वामा माव्यु नथी-424॥ “ उरालमेव औरालिकम् " सा વ્યુત્પત્તિ અનુસાર અહ૫ પ્રદેશથી ઉચિત હોવાથી અને વિશાળ હોવાથી सिंनी २५ तालिवामा आयुछ " औरालिक " भी पहनी सिद्धि निपातनथी । छ. मथा-औरालमेव औरालिकम् " मा व्युत्पत्ति અનુસાર જે શરીર ઓરલ હેય છે, માંસ, અસ્થિ, સ્નાયુ આદિ વડે બધા યેલ હોય છે તેને રાલિક કહેવામાં આવે છે પાંચ શરીરમાં માત્ર દારિક શરીર જ માંસ, અથિ આદિથી યુક્ત હોય છે--અન્ય શરીર