Book Title: Sthanang Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 556
________________ ५३८ - खत्र-सत्यं १ संयमः २ तपः ३ त्यागो ४ ब्रह्मचर्यवासः ५, इति पञ्च स्थानानि। तत्र-सत्यं-यथार्थमापणम्, तच्चतुर्विधमुक्तम् । तथाहि" अविसंवादनयोगः १, भाय २ मनोवाग ३ जिलता ४ चैत्र । सत्यं चतुर्विधं तप जिनबरमतेऽस्ति नान्यत्र ।।१॥” इति । अविसंवादनयोगः अङ्गीतपरिपालनम्, कायमनोवागजिह्मता कायमनोवचसामकुटिलता चेति चतुर्विधं सत्यं विज्ञेयमिति भावः । तथा-संयमःसंयमनं संयमः-पृथिव्यादिरक्षण लक्षणः, स च सप्तदशविधः । तदुक्तम् -- " पुढविदगअगणिमारुययणप्फइविति चउपचिदिअंजीवे । पेहोपेहपमज्जण परिसृष्ण मणोवईकाए ॥१॥ . छाया-पृथ्वीदकाग्निमारुतवनस्पति द्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रिया जीवेषु । प्रेक्षोत्प्रेक्षप्रमार्जन परिष्ठापनमनोवाक्कायेषु ।।१॥ प्रकारले सत्य १ संघमर तप३ त्याग और ब्रह्मचर्यवाम ये पांच स्थान भी श्रमण भगवान महावीर द्वारा यावत् अभ्यनुज्ञान हुए हैं। यहां समस्त सत्रों में ग्रावत्पदसे " वर्णिनानि, कीर्तितानि, उक्तानि, प्रशं. सितानि " इन चार पदोंका संग्रह हुआ है, यथार्थ भापणका नाम सत्य है ? यह सत्य चार प्रकारका कहा गया है-जैसे-' अविसंवादनयोगः" इत्यादि अङ्गीकृतका (स्वीकार किये हुवेका) परिपालन करना इस का नाम अविसंवादनयोग है, एवं काय, मन वचनकी अकुटिलता सरलता का काय मनोवागजिस्मता है, इस प्रकारसे सत्यके ये चार भेद हैं। पृथिव्यादिकोंका रक्षणकरने रूप संयम होता है, अर्थात् छह कायके जीवोंकी रक्षा करना यह संयम १७ प्रकारका कहा गया है, जैसे-“पुढविदग अगणि" इत्यादि । પ્રમાણે સત્ય, સંયમ, તપ, ત્યાગ અને બ્રહ્મચર્યવાસ રૂપ આ પાચ સ્થાને પણ વર્ણિત, કીર્તિત આદિ રૂપ માનવામાં આવેલ છે યથાર્થ ભાષણ અથવા पयननु नाम सत्य . मा सत्य न्या२ ५४२नु ४[ छ-" अविसंवादनयोगः" ઈત્યાદિ. અગીકૃતનું પાલન કરવું તેનું નામ અવિસંવાદન ગ છે. અને મન, વરાન અને કાયાની અકુટિલતા રૂપ બીજા ત્રણ ભેદો મળીને સત્યના કુલ ચાર ભેદ પડે છે. પૃથ્વીકાય આદિનું રક્ષણ કરવા રૂપ સંયમ હોય છે. એટલે કે છકાયના જાની રક્ષા કરવી તેનું નામ સંયમ છે. તે સંયમના ૧૭ સત્તર પ્રકાર छ. भ? " पुढविदाजगणि" छत्यादि. आसाथी वि२४॥ था ३५

Loading...

Page Navigation
1 ... 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636