Book Title: Sthanang Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 579
________________ बुधारीका स्था०५ उ०१ सू०१२ आशायाऽघिराधिककारणम् ५६१ स्थानम् २। तथा-हिंसाप्रेक्षी-हिंसां आचार्यादेवधं प्रेक्षते अन्वेषयति यः सः, आचार्यादे बंधार्थमयसरगरेपीत्यर्थः । इति तृतीय स्थानम् ३। बधा-छिद्रप्रेक्षीछिद्राणि-प्रमत्ततादीनि प्रेक्षते यः सः, धामपमानार्थ वा आचार्यादेछिद्र. गवेषक इत्यर्थः । इति चतुर्थ स्थानम् ४॥ तथा-अभीक्ष्णम् अभीक्ष्णम्-पुनः पुनः प्रश्नायतनानि-प्रश्ना-अङ्गुष्ठकुडयप्रश्नादयः सायद्यानुष्ठानपृच्छया चा, त एव आयतनानि असंयमानां स्थानानि तानि प्रयोक्ता-अनुष्ठाता भवतीति पश्चम स्थानम् ५ इति ॥१० ११॥ भेद करनेवाला १। द्वितीय कारण-"गणे वसति गणस्य भेदाय अभ्युस्थाता भवति २"ऐसा है, कि जो कुल समुदाय रूप गणमें रहता हुआ भी उत्ती गणको छिन्नभिन्न करनेके लिये प्रयत्नवाला होताहै, २। तीसरा कारण-"हिंसाप्रेक्षी" ऐसा है-कि जो अपने आचार्य आदिके वध करनेके अवसरकी प्रतीक्षामें रहता है, ३। चतुर्थ कारण-" छिद्रपेक्षी" ऐसा है. कि जो आचार्य आदिके वधके लिये या उन्हे अपमानित करनेके लिये उनके प्रसत्तता आदि छिद्रोंकी गवेषणा करने में लगा रहता है, पांचवां कारण-" अभीक्ष्णं २ प्रश्नायतनानि प्रयोक्ता भवति" ऐसा है, कि जो बार २ अङ्गुष्ठकुड्यप्रश्नादि रूप या सावध अनुछान पृच्छारूप असंयम स्थानोंका अनुष्ठाता होता है ५। इन पांच कारणोंसे साधर्मिक साधुको पाराश्चित करनेवाला जिनोज्ञाका विराधक नहीं होता है॥० ११ ॥ पतडाय, तेने पायित ४१ शय छ (२) “गणे वसति गणस्य भेदाय अभ्यु थाता भवति" (सना समूडने र ४ छ) रे साधु गाभा २हीन, ગણને જ છિન્નભિન્ન કરવામાં પ્રયત્નશીલ રહે છે, તેને પણ પારાંચિત કરી शय छे. (3) "हिंसाप्रेमी" २ साधु पाताना माया माहिना १५ કરવાના અવસરની પ્રતીક્ષામાં રહે છે, તેને પણ પારાંચિત (સાધુના લિંગથી २हित ) श शायछ. (४) “छिद्र क्षीरे साधु मायाय माहिन अ५માનિત કરવાને માટે તેમના છિદ્રો જ-પ્રમત્તતા આદિ દે જ શોધ્યા કરે छे, ते ५५ पायित ४३१ शय छ (५) “ अभीक्ष्णं २ प्रश्नायतनानि प्रयोक्ता भवति "रे साधु पार :२ अY४४७५ प्रश्न ३५ अथवा सावध અનુષ્ઠાન પૃચ્છારૂપ અસંયમ સ્થાને અનુછાતા હોય છે, તેને પણ પારાં ચિત કરી શકાય છે આ પાંચ કારણોને લીધે સાધર્મિક સાધુને પારાંચિત કરનારે શ્રમણ નિર્ચ થ જિનાજ્ઞાને વિરાધક બનતો નથી. છે સૂ. ૧૧ છે स्था०-७१

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