Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
रूप तथा अव्यापक धर्म रूप है, मीमांसक आदि का नित्य, सर्वगत, एक ऐसा सामान्य प्रतीति में नहीं पाता है। एक तो बात यह है कि सर्वथा नित्य में अर्थ क्रिया नहीं होती। सामान्य यदि सर्वगत है तो व्यक्ति व्यक्ति में पृथक् पृथक् कैसे रहेगा वह तो उनके अंतरालों में भी उपलब्ध होना चाहिये ? तथा एक ही है तो गो आदि व्यक्ति मर जाने पर उनका गोत्व सामान्य कहीं जायगा अथवा नष्ट होगा इत्यादि आपत्तियां आवेगी, सामान्य यदि सर्वत्र है तो वह अकेला ही अपना अनुगत रूप ज्ञान पैदा करा देता है अथवा व्यक्ति सहित होकर कराता है ? अकेला करायेगा तो व्यक्तियों के अंतराल में भी गो है गो है ऐसा ज्ञान होना चाहिए । किन्तु होता नहीं । व्यक्ति सहित सामान्य अनुगत ज्ञान करायेगा तो सभी व्यक्तियों के जानने पर या बिना जाने ? संपूर्ण व्यक्तियों को जानने पर अनुगत ज्ञान कराता है ऐसा कहना शक्य नहीं, क्योंकि असर्वज्ञ जीवों को सम्पूर्ण व्यक्तियों का ज्ञान होता ही नहीं। सभी को जाने बिना अनुगत ज्ञान होगा तो एक व्यक्ति के जानते ही उसमें सामान्य का बोध अर्थात् यह गाय है यह गाय है ऐसा ज्ञान होना चाहिए किन्तु होता नहीं। तथा सामान्य सर्वगत है सो कैसा सर्वगत है सर्व सर्वगत अर्थात् सर्वत्र आकाश में व्यापक है अथवा अपने विवक्षित स्थान या स्वरूप में सर्वगत पूर्णरूप है ? सर्व सर्वगत कहो तो व्यक्ति व्यक्ति के अंतराल में वह क्यों नहीं दिखता ? गाय गाय के अन्तराल में गोत्व दिख जाना चाहिए । अंतराल में वह गोत्व सामान्य अदृश्य रहता है या इंद्रिय सम्बन्ध से रहित है इत्यादि कारण बताना शक्य नहीं है क्योंकि जब गोत्व एक ही है तो एक गाय में हो बीच में न होकर पुनः दूसरी गाय में रहे यह बात बिलकुल जमती नहीं । नित्य होने से उसमें स्वभाव परिवर्तन भी नहीं होगा अतः अंतराल में अव्यक्त होना, अदृश्य होना दूर रहना इत्यादि बातें नहीं होंगी। यदि होगी तो अंतराल की तरह व्यक्ति व्यक्ति में भी अव्यक्त अदृश्य ऐसा ही सामान्य रहेगा क्योंकि वह सदा सर्वत्र समान है । अतः आकाश की तरह सामान्य का सर्व सर्वगत होना सम्भव नहीं है। यदि स्वव्यक्ति में सर्वगत है तो वह एक रूप सामान्य दूसरे असंख्यातों व्यक्तियों में कैसे रह सकेगा। जब दूसरे में जाने लगेगा तो पहला व्यक्ति सामान्य रहित होगा। तथा सामान्य को आप निष्क्रिय मानते हैं अतः वह कहीं जा भी नहीं सकता । पहले व्यक्ति को बिना छोडे जाता है कहो तब तो वह अनेक हो गया । इस तरह बौद्ध के समान नैयायिक के सामान्य की भी सिद्धि नहीं होती है । मीमांसक भाट्ट सामान्य और विशेष में सर्वथा तादात्म्य
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