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प्रमेयकमलमार्तण्डे
'पटे तन्तवो वृक्षे शाखा।' इत्यादिरूपतया प्रतीयमानप्रत्ययेन 'इह तन्तुषु पटः' इति प्रत्ययस्य बाध्यमानत्वात् । स्वरूपासिद्धश्चायम् ; तन्तुपटप्रत्यये इहप्रत्ययत्वस्यानुभवाभावात्, 'पटोयम्' इत्यादिरूपतया हि प्रत्ययोनुभूयते ।
अनैकान्तिकश्च ; 'इह प्रागभावेऽनादित्वम्, इह प्रध्वंसाभावे प्रध्वंसाभावाभावः' इत्यबाध्यमानेहप्रत्ययस्य सम्बन्धपूर्वकत्वाभावात् । न चात्र विशेषणविशेष्यभावः सम्बन्धो वाच्यः; सम्बन्धमन्तरेण विशेषणविशेष्यभावस्याऽसम्भवात्, अन्यथा सर्वं सर्वस्य विशेषणं विशेष्यं च स्यात् । सम्बन्धे
इत्यादि ज्ञान का विषय समवाय है, ऐसा जैन के यहां माना ही नहीं] "अबाध्यमान इह प्रत्ययत्वात्" हेतु अप्रसिद्ध विशेषण वाला भी है, अर्थात् इसका अबाध्यमानत्व विशेषण सिद्ध नहीं है, "इस वस्त्र में तन्तु हैं" इस वृक्ष पर शाखायें हैं इत्यादि विपरीत क्रम से अर्थात् तन्तुओं में वस्त्र है ऐसा प्रत्यय न होकर वस्त्र में तन्तु हैं ऐसा भी प्रत्यय होता हुआ देखा जाता है, जैसे अवयवों में अवयवो प्रतीत होता है वैसे अवयवी में अवयव भी प्रतीत होते हैं । अतः "इह प्रत्यय" बाधित ठहरता है । यह हेतु स्वरूपासिद्ध दोष युक्त भी है, कैसे सो ही बताते हैं-तन्तु और वस्त्र के ज्ञान में "इह प्रत्यय" अनुभव में आता नहीं, वहां तो "पटोऽयं" "यह वस्त्र है" इत्यादि स्वरूप से प्रतिभास होता है।
, इह प्रत्ययत्वात् हेतु अनेकान्तिक भी है, क्योंकि जहां जहां अबाध्यमान इह प्रत्यय है वहां वहां वह संबंध का ही कार्य है ऐसा साध्य के साथ हेतु का अविनाभाव नहीं है, इस प्रागभाव में अनादिपना है “यहां प्रध्वंसाभाव में प्रध्वंसाभाव का प्रभाव है" इत्यादि स्थानों पर अबाध्यमान इह प्रत्यय तो हो रहा है किन्तु वह संबंध का कार्य नहीं है अतः यह हेतु अनैकान्तिक है, “विपक्षेप्यविरुद्धवृत्तिः अनेकान्तिकः" विपक्ष में जो हेतु अविरुद्धपने से रहता है वह अनेकान्तिक है ऐसा सभी ने स्वीकार किया है।
शंका-यहां प्रागभाव में अनादिपना है इत्यादि स्थान पर जो इह प्रत्यय होता है वह विशेष्य-विशेषण संबंध का कार्य है, अर्थात् विशेषण-विशेष्य संबंध होने के कारण यहां पर इह प्रत्यय होता है ?
समाधान- ऐसा भी नहीं कह सकते, संबंध के बिना विशेषण विशेष्यभाव होना असंभव है। यदि ऐसा नहीं है तो सब पदार्थ सभी के विशेषण और विशेष्य
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