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तदाभासस्वरूपविचार:
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अस्मिस्तदिति ज्ञानं स्मरणाभासं जिनदत्ते स देवदत्तो यथेति ॥ ८ ॥ तथैकत्वादिनिबन्धनं तदेवेदमित्यादि प्रत्यभिज्ञानमित्युक्तम् । तद्विपरीतं तुसदृशे तदेवेदं तस्मिन्नेव तेन सदृशं यमलकवदित्यादि प्रत्यभिज्ञानाभासम् ॥ ६ ॥
अनुभूत विषय में “वह" इसप्रकार की प्रतीति होना स्मरण प्रमाण कहलाता है, यदि बिना अनुभूत किया पदार्थ हो तो
अतस्मिन् तदिति ज्ञानं स्मरणाभासं जिनदत्ते स देवदत्तो यथेति ।।८।।
अर्थ-जो वह नहीं है उसमें "वह" इसप्रकार की स्मृति होना स्मरणाभास है, जैसे जिनदत्त का तो अनुभव किया था और स्मरण करता है “वह देवदत्त" इस प्रकार का प्रतिभास होना स्मृत्याभास है। एक वस्तु में जो एकपना रहता है उसके निमित्त से होने वाला-उसका ग्राहक ज्ञान प्रत्यभिज्ञान होता है, तथा और भी प्रत्यभिज्ञान के भेद पहले बताये थे उनसे विपरीत जो ज्ञान हो वे प्रत्यभिज्ञानाभास हैं अर्थात् सदृश में एकत्व का और एकत्व में सदृश का ज्ञान होना प्रत्यभिज्ञानाभास है आगे इसीको कहते हैं --
सदृशे तदेवेदं तस्मिन्नेव तेन सदृशं यमलकवदित्यादि प्रत्यभिज्ञानाभासं ।।६।।
अर्थ-सदृश वस्तु में कहना कि यह वही पुरुष [ जिसे मैंने कल देखा था ] है, और जो वही एक वस्तु है उसको कहना या उसमें प्रतीति होना कि यह उसके सदृश है सो कमशः एकत्व प्रत्यभिज्ञानाभास और सदृश प्रत्यभिज्ञानाभास है, जैसे एक व्यक्ति के दो युगलिया [ जुड़वां ] पुत्र थे, मान लो एक का नाम रमेश और एक का नाम सुरेश था दोनों भाई-बिलकुल समान थे, उन दोनों को पहले किसी ने देखा था किन्तु समानता होने के कारण कभी रमेश को देखकर उसमें यह वही सुरेश है जिसे पहले देखा था ऐसी प्रतीति करता है, तथा कभी वही एक सुरेश को देखकर भी कहता या समझता है कि यह रमेश सुरेश सदृश है। इसतरह प्रत्यभिज्ञानाभास के उदाहरण समझने चाहिये ।
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