Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
यथा 'अनित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवत्' इत्युक्त परः प्रत्यवतिष्ठते-यदि शब्दस्य घटेन साधम्यं कृतकत्वादिनाऽनित्यत्वं साधयेत्, तदा सर्व वस्त्वनित्यं प्रसज्येत घटादिनाऽनित्येन सत्त्वेन कृत्वा साधर्म्यमात्रस्य सर्वत्राऽविशेषात् ।
तस्याश्च दूषणाभासत्वम् ; प्रतिषेधकस्याप्यसिद्धिप्रसङ्गात् । पक्षो हि प्रतिषेध्यः प्रतिषेधकस्तु प्रतिपक्षः । तयोश्च साधर्म्य प्रतिज्ञादियोग : तेन विना तयोरसम्भवात् । तत: प्रतिज्ञादियोगाद्यथापक्षस्या सिद्धिस्तथा प्रतिपक्षस्यापि । अथ सत्यपि साधर्म्य पक्षप्रतिपक्षयोः पक्षस्यैवासिद्धिर्न प्रतिपक्षस्य ; तहि घटेन साध्यात्कृतकत्वाच्छब्दस्याऽनित्यतास्तु, सकलार्थानां त्वनित्यता तेन साधर्म्यमात्रात् मा भूदिति।
अनित्य है, किया हुअा होने से, घट के समान । इसतरह वादी के कहने पर प्रतिवादी दोष देता है-यदि शब्द का घटके साथ कृत कत्वादि से साधर्म्य होने से अनित्यपना सिद्ध किया जाता है तो सभी वस्तु अनित्य सिद्ध होगी क्योंकि अनित्य घट आदि के साथ सत्त्व धर्म द्वारा साधर्म्य तो सर्वत्र सर्व वस्तुओं में समान रूप से पाया जाता है ।
इस जाति का निराकरण करते हैं कि यह केवल दूषणाभास है, क्योंकि इस तरह तो प्रतिषेधक अर्थात् प्रतिषेध करने वाला जो प्रतिपक्ष है उसका भी अभाव होगा । देखिये, पक्ष तो प्रतिषेध्य [निषेध योग्य] हुआ करता है और प्रतिषेधक प्रतिपक्ष होता है, इन दोनों में [ प्रतिषेध्य-प्रतिषेधक या पक्ष प्रतिपक्ष में ] प्रतिज्ञा हेतु अादि का होना रूप साधर्म्य रहता ही है, उसके बिना पक्ष प्रतिपक्ष संभव ही नहीं । तिसकारण जैसे प्रति वादी के कथनानुसार प्रतिज्ञा आदि युत्ता पक्ष की प्रसिद्धि हो रही है, वैसे प्रतिवादो के प्रतिपक्ष को भी प्रसिद्धि हो जानो ? क्योंकि प्रतिज्ञादिरूप साधर्म्य दोनों में है एक की प्रसिद्धि होने पर दूसरे की प्रसिद्धि होगी ही। यदि प्रतिवादी द्वारा कहा जाय कि पक्ष और प्रतिपक्ष में साधर्म्य अवश्य है किन्तु पक्ष की ही असिद्धि है प्रतिपक्ष की नहीं । प्रतिवादी के इस मतव्य पर हम कहते हैं कि उसीप्रकार घट के साथ साधर्म्य को प्राप्त हुए कृतकत्व हेतु से शब्द की अनित्यता तो सिद्ध होवे किन्तु केवल सत्त्व द्वारा साधर्म्य होने से सब पदार्थों में अनित्यपना मत होवे । यही न्याय मार्ग है।
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