Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 695
________________ ६५२ प्रमेयकमलमार्त्तण्डे साभासं गदितं प्रमाणमखिलं संख्याफलस्वार्थतः, सुव्यक्तैः सकलार्थसार्थविषयैः स्वल्पैः प्रसन्नैः पदैः । येनासौ निखिलप्रबोधजननो जीयाद्गुणाम्भोनिधि:, वाक्कीयों: परमालयोऽत्र सततं माणिक्यनन्दिप्रभुः ॥ १ ॥ इति श्रीप्रभाचन्द्रविरचिते प्रमेयकमलमार्तण्डे परीक्षामुखालङ्कारे पञ्चमः परिच्छेदः समाप्तः ॥ ने जाति आदि को नहीं माना किन्तु दो निग्रहस्थान माने हैं प्रसाधनांग वचन और प्रदोषोद्भावन । इन सबका क्रमवार निरसन प्राचार्य देव ने कर दिया है, सर्व प्रथम त्रिविध छल [ वाक्छल, सामान्यछल और उपचारछल] का निरसन है अनन्तर चौबीस जातियों का और अंत में बाईस निग्रहस्थानों का निरसन किया है, तथा सबके अंत में बौद्धाभिमत उक्त दो निग्रह स्थानों का निराकरण किया है, और सिद्ध किया है कि स्वपक्ष की सिद्धि करने पर ही जय होता है और स्वपक्ष को सिद्ध नहीं करने पर पराजय होता है । अब श्री प्रभाचन्द्राचार्यदेव इस पंचमपरिच्छेद का उपसंहार करते हैं- इस परिच्छेद में जिनके द्वारा प्रमाणाभास सहित संपूर्ण प्रमाणों का सुव्यक्त- स्पष्ट पूर्ण अर्थ के विषय वाले, स्वल्प एवं प्रसन्न पदों द्वारा वर्णन किया गया है तथा उन प्रमाणों की संख्या और संख्याभास, फल और फलाभास, विषय और विषयाभासों का स्पष्ट पदों द्वारा वर्णन किया गया है वे निखिल बोध के जनक गुणों के समुद्र, सरस्वती और कीर्ति के परमधाम स्वरूपमाणिक्यनंदी प्राचार्य इस भूमंडल पर सदा जयवंत रहें । Jain Education International इसप्रकार श्रीप्रभाचन्द्र ग्राचार्य विरचित प्रमेयकमलमार्त्तण्ड जो कि परीक्षा मुख ग्रंथ का अलंकार स्वरूप है उसका पंचम परिच्छेद पूर्ण हुआ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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