Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 724
________________ सप्तभंगोविवेचनम् ६८१ व्यवस्था के लिये विरुद्ध धर्म अपेक्षणोय है । अथवा प्रमाण सप्तभंगी सकलादेशी और नयसप्तभंगी विकलादेशी है। अन्य धर्म को अपेक्षा रखना और अन्य धर्म की उपेक्षा करना यह भी इन दो सप्तभंगी में भेद-अन्तर है। वस्तु में सात ही स्वरूप क्यों हैं इसका समाधान भी बहुत अच्छे प्रकार से दिया है नयसप्तभंगो का कथन करते हुए नैगम आदि नयों में से नैगम और संग्रह, नैगम और व्यवहार इत्यादि का आश्रय लेकर विधि प्रतिषेध को कल्पना करके दिखाया गया है। जैसे नैगमनय के प्राश्रय से विधि कल्पना प्रस्थादि संकल्पमात्र रूप है "स्यात् प्रस्थादि अस्ति" और संग्रहनय के आश्रय से प्रतिषेध कल्पना, प्रस्थादि संकल्पमात्र नहीं है स्यात् प्रस्थादि नास्ति इत्यादि। इस प्रकार इन दोनों के प्राश्रय से एक सप्तभंगी होगी ऐसे ही नैगम और व्यवहार, नैगम और ऋजुसूत्र इत्यादि का आश्रय लेकर सप्तभंगी के सैकड़ों भेद होना सम्भव है। अस्तु । ।। नयविवेचन एवं सप्तभंगी विवेचन का सारांश समाप्त ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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