________________
६८८
प्रमेयकमलमार्तण्डे शैट्स्यतोऽनोक्टोनेनलड्य ककुलोद्भवो वैषोप्य नैश्यतापस्तन्नऽनृरड्लड्जुट परापरतत्त्ववित्तदन्योऽनादिरवायनीयत्वत एवं यदोदृक्तत्सकलविद्वर्गवदेतच्चवमेवं तदिति पत्रम् । प्रस्यायमर्थ :-इन प्रात्मा सकल स्यहिकपारलौकिकव्यवहारस्य प्रभुत्वात्, सह तेन वर्तते इति सेनः । स एव चातुर्वर्णादिवत्स्वार्थिके ध्यणि कृते 'सैन्यम्' इति भवति । तस्य लड्= विलास, तं भजते सेवते इति सैन्यलड्भाक्-'देहः' इति यावत् । अर्थः प्रयोजनं तस्मै अर्थार्थः, न अर्थार्थोऽनार्थः । प्रकृष्टो लौकिकस्वापाद्विलक्षण: स्वापः प्रस्वापः=बुद्ध्यादिगुणवियुक्तस्यात्मनोऽवस्थाविशेष: मोक्ष इति यावत् । न हि तत्साध्यं किञ्चित्प्रयोजनमस्ति; तस्य सकल पुरुषप्रयोजनानामन्ते व्यवस्थानात् । अनर्थार्थश्चासौ प्रस्वापश्च । नन्वेवं सौगतस्वापस्यापि ग्रहणं स्यात्, सोपि ह्यनर्थार्थप्रस्वापो भवति सकलसन्ताननिवृत्तिलक्षणस्य मोक्षस्य सौगतरभ्युपगमात् । तदुक्तम्
"दीपो यथा नितिमभ्युपेतो नैवावनि गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न काञ्चिद्विदिशं न काञ्चित्स्नेहक्षयात्केवलमेति शान्तिम् ।।
नेनलड्य ककुलोद्भवो वैषोप्यनैश्यतापस्तन्नऽनृरड्लड्जट परापरतत्त्व वित्तदन्योऽनादिरवायनीयत्वत एवं यदीहक् तत् सकलविद्वर्गवदेतच्चैव मेवं तत्" यह पत्र है। इसका गर्थ इन मायने आत्मा सकल इहलोक सम्बन्धी एवं परलोक संबंधी व्यवहार का प्रभु होने से प्रात्मा इन कहलाता है, उसके साथ रहे वह सेनः है उसमें चातुर्वर्ण्य शब्द के समान स्वार्थिक घ्यण् प्रत्यय जोड़ने पर 'सैन्यं' बना । उसका लड् [लड् धातु विलास अर्थ में] अर्थात विलास उसको भजे वह सैन्यलड्भाक् अर्थात् देह है। अर्थप्रयोजन उसके लिये हो वह अर्थार्थ है :न अर्थार्थः अनर्थार्थः है । प्र स्वापः अर्थात् लौकिक स्वाप [निद्रा ] से विलक्षण स्वाप को प्रस्वाप कहते हैं उसका अर्थ है बुद्धि आदि गुणों से पथक ऐसी प्रात्मा की अवस्था होना अर्थात् मोक्ष है। उस मोक्ष को साधने का कोई प्रयोजन नहीं क्योंकि सकल पुरुष के प्रयोजनों के अंत में यह व्यवस्थित है। अनर्थार्थ और प्रस्वाप का कर्मधारय समास हुआ है।
शंका-प्रस्वापरूप उक्त मोक्ष के मानने पर सौगत के स्वापरूप मोक्ष का ग्रहण होवेगा क्योंकि वह भी अनर्थार्थ प्रस्वाप है, सम्पूर्ण सन्तानों की निवृत्ति होना रूप मोक्ष सौगत ने भी माना है। कहा भी है-जैसे दीपक निवृत्ति को प्राप्त हा [बुझा हुआ] न पृथ्वी में जाता है न आकाश में जाता है, न किसी दिशा में न किसी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org