Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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पृष्ठ
२
३५
६८
६३
१०३
११३
११७
१२३
१२४
१५०
१७०
१८०
१६७
२००
२१८
२२०
२२६
२३३
२३७
२५६
३१४
पंक्ति
५
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१०
१४
२
३
१०
१३
१६
३
१७
ह
६
१
२६
२४
२०
४
१
२
शुद्धि-पत्र
११
४
२३
प्रशुद्ध
पूर्वोत्तरा......
वैशिष्य
पदर्थों की
तद्दृथा ।
प्राग्भावस्या
प्रागभावस्था
सत्त्व और क्षणिक में
सत्त्व और अक्षणिकमें
सुगता और इतर चित्तों में सुगत और इतर जनोंके चित्तों में
स्वर्ग प्राप्य
स्वर्ग प्रापण
कृतस्व
भवान्तर
शक्य क्योंकि
दिष्ट
स्वकार्यकारणदुपरमते । सदोष बाधित
" खस्य भावः खत्वे"
संकट
प्रभाव
पृष्ठ २१६ की संस्कृत भाषा की चार पंक्तियों एवं पृष्ठ २१७ की तीन पंक्तियों का हिंदी अर्थ गलती से अन्य प्रकरण में पृष्ठ २२१ और २२२ पर छप गया है।
शुद्ध
धनुवृत्तव्यावृतप्रत्यय गोचरत्वात् पूर्वोत्तरा
वैशिष्टय
पदार्थों की
तद्वृथा ।
योग के
तद् व्यापकस्यापि
मित्ति श्रादि
एक द्रव्य : । शब्दः
उस दिन निकटवर्ती
कृतकत्व,
भावान्तर
शक्य नहीं, क्योंकि
द्विष्ट
स्वकार्यंकरणादुपरमते ।
बाधित
" खस्य भावः खत्वं"
संकर
प्रमाण
योग के
व्यापकस्यापि
मिट्टी श्रादि
एकद्रव्य : शब्द:
उस निकटवर्ती
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