Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 739
________________ ६६६ प्रमेयकमलमार्त्तण्डे लक्षणपत्रदानेन प्रयोजनम् । ननु वादप्रवृत्तिः प्रयोजनमस्त्येव तद्दाने हि वादः प्रवर्त्तते, साधनाद्यभिधानं तु मानसार्थे वचनान्तरात्प्रतीयमान इत्यभिधाने तु पराक्रोशमात्रं लिखित्वा दातव्यं ततोपि वादप्रवृत्तेः सम्भवात् किमतिगूढपत्रविरचन प्रयासेन ? तन्नाद्यपक्षे पत्रावलम्बनं फलवत् । अथ तच्छब्दाद्यः प्रतीयते स तदर्थ:; तर्हि खात्पतिता नो रत्नवृष्टिः प्रकृतिप्रत्ययादिप्रपञ्चार्थप्रविभागेन प्रतीयमानस्य पत्रार्थत्वव्यवस्थिते: । श्रथ नायं तदर्थः; कथमन्यस्तदर्थ: स्यात् ? अथान्यार्थ - सम्भवेपि यस्तदवलम्बिनेष्यते स एव तदर्थ: । कुत एतत् ? ततः प्रतीतेश्चेत्; ग्रन्योप्यत एव स्यात् । शंका- ऐसा पत्र देने में वाद प्रवृत्ति होना रूप प्रयोजन सिद्ध होता है क्योंकि ऐसा पत्र देने से वाद प्रारम्भ हो जाता है, तथा साधनादि कथन तो ग्रन्य वचन द्वारा मन में स्थित अर्थ की प्रतीति होने से हो जाता है ? समाधान—उक्त प्रकार का पत्र देने में वाद प्रारम्भ होना ही प्रयोजन है तो परवादी को गाली आदि लिखकर देने में भी वाद प्रवृत्ति का प्रयोजन सधता है अतः परको गाली मात्र को लिखकर दे देना चाहिये व्यर्थ के अत्यन्त गूढ पत्र को रचने से क्या लाभ ? इसप्रकार आपके मन में स्थित जो अर्थ है वह पत्र का अर्थ है ऐसा पक्ष स्वीकार करने में पत्र का अवलम्बन लेकर वाद करना फलवान् सिद्ध नहीं होता । दूसरा विकल्प- पत्र के शब्द से जो अर्थ प्रतीत होता है वह उसका अर्थ है ऐसा कहो तो हम जैन के लिये आकाश से रत्न वृष्टि होने के समान हुआ क्योंकि प्रकृति प्रत्यय प्रादि के विस्तृत अर्थ विभाग से प्रतीयमान अर्थवाला पत्र होता है उसका अर्थ शब्द से प्रतीत होता है ऐसा हमने पत्र का लक्षण किया है वह सिद्ध हुआ । यदि शब्द से प्रतीयमान अर्थ उस पत्र का नहीं होता तो अन्य दूसरा अर्थ कैसे हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता । - शंका- - अन्य दूसरा अर्थ सम्भव तो है किन्तु पत्र का अवलम्बन लेने वाले वादी को जो अर्थ इष्ट है वही अर्थ पत्र का कहलायेगा ? समाधान -- यह किससे जाने ? उस तरह प्रतीति होने से जाना जायगा ऐसा कहो तो अन्य अर्थ भी प्रतीति से जाना जावे | शंका - शब्द से प्रतीयमान अर्थ समानरूप होने पर भी उस वादी द्वारा जो अर्थ इष्ट किया है वही उस शब्द का अर्थ मान्य होगा अन्य नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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