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पत्रविचारः
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जयेतरव्यवस्था रचयेयुः । नो चेत्कथं तत्र कस्यचित्स्फुरणमस्फुरणं वा ते प्रतियन्तु ? न ह्यप्रतिपन्नभूतलस्य 'अत्र भूतले घटोस्ति नास्ति' इति वा प्रतीतिरस्ति । अथ स्वयमेव यदासौ वदति-'ममायमर्थो मनसि वर्तते नायम्' इति तदा ते तथा प्रतिपद्यन्ते; न; तदापि संदेहात्-'किं प्रतिवादिना योर्थो निश्चितः स एवास्य मनसि वर्तते शब्देन तु वदति नायमर्थो मम मनसीति किन्त्वन्य एव-यो मया प्रतिपाद्यते, उतायमेव, इति न निश्चयहेतुः। दृश्यन्ते ह्यनेकार्थ पत्रं विरचय्य, 'यदीदमस्यार्थतत्त्वं प्रतिवादी ज्ञास्यति तवं वदिष्यामः, नेदमर्थतत्त्वमस्य किन्त्विदमिति, अथेदं ज्ञास्यति तत्राप्यन्यथा गदिष्यामः' इति सम्प्रधारयन्तो वादिनः । अथ गुर्वादिभ्यः पूर्वमसौ तन्निवेदयति, ततस्तेभ्यः प्राश्नि
तो वे अतीन्द्रिय ज्ञानीजन वादी और प्रतिवादी के सार या प्रसार अर्थ को प्रत्यक्ष से वाक्य उपन्यास के बिना ही ज्ञात कर लेंगे और जय पराजय की व्यवस्था कर देंगे ? यदि ऐसा नहीं है तो वे अतीन्द्रिय ज्ञान रहित प्राश्निक महाजन किसी के मनके स्फुरण को [ मनके विकल्प विचार में स्थित अर्थ को ] या अस्फुरण को किस तरह ज्ञात कर सकते हैं ? जिसने भूतल को नहीं जाना वह किसप्रकार ज्ञात कर सकता है कि “यहां पृथ्वी पर घट नहीं है" ।
शंका-जब वादी स्वयं ही कह देता है कि मेरे मन में यह अर्थ है प्रतिवादी का कहा हुअा अर्थ तो मेरे मन में वर्त्त नहीं रहा, तब प्राश्निक जन प्रतिवादी द्वारा कहा जा रहा अर्थ वादी के मन में स्फुरायमान है या नहीं इस बात को ज्ञात करते हैं ?
समाधान-यह कपन असत् है, ऐसा माने तो भी संदेह रहेगा अर्थात् प्राश्निक जन अतीन्द्रिय ज्ञानी तो है नहीं उन्हें तो संशय ही रहेगा कि प्रतिवादी द्वारा जो अर्थ निश्चित किया है वही अर्थ इस वादी के मन में वर्त्त रहा किन्तु शब्द से कहता है कि वह अर्थ मेरे मन में नहीं, मेरे मन में तो जो बता रहा हूं वह अर्थ है । अथवा सच में यही अर्थ वादी के मन में है जो मुख से कह रहा है । इसतरह प्राश्निक को निश्चय नहीं हो सकता। देखा भी जाता है कि वादी अनेक अर्थ वाले पत्र को रचते हैं और मनमें विचारते हैं कि यदि प्रतिवादी इस अर्थ को जानेगा तो हम ऐसा कहेंगे कि इस पत्र वाक्य का यह अर्थ नहीं है किन्तु यह है, तथा प्रतिवादी यदि इस दूसरे अर्थ को जानेगा तो अन्य अर्थ को कहेंगे ।
__ शंका-वादी पहले अपने गुरुजनादि को पत्र वाक्य के अर्थ का निवेदन कर देता है अतः पीछे प्राश्निक पुरुष उन गुरु प्रादि से वादी के अर्थ का निश्चय कर लेते हैं ?
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