Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 729
________________ ६८६ प्रमेयकमलमार्त्तण्डे र्थः । तस्य भावस्तत्त्वं 'प्रमेयत्वम्' इत्यर्थः प्रमाणविषयस्य प्रमेयत्वव्यवस्थितेः इति साधनधर्म निर्देशः । दृष्टान्ताद्यभावेऽपि च हेतोर्गमकत्वम् " एतद्द्वयमेवानुमानाङ्गम्" [ परीक्षामु० ३।३७] इत्यत्र समर्थतम् । अन्यथानुपपत्तिबलेनैव हि हेतोर्गमकत्वम्, सा चात्रास्त्येव एकान्तस्य प्रमाणागोचरतया विषयपरिच्छेदे समर्थनात् । एवं प्रतिपाद्याशयवशात्त्रिप्रभृतयोध्यवयवाः पत्रवाक्ये द्रष्टव्या: । तथाहि "चित्राद्यदन्तराणीयमारेकान्तात्मकत्वतः । यदित्थं न तदित्थं न यथाऽकिञ्चिदिति त्रयः ॥ १ ॥ तथा चेदमिति प्रोक्तौ चत्वारोऽवयवा मताः । तस्मात्तथेति निर्देशे पश्च पत्रस्य कस्यचित् || २ ||" [ पत्रप० पृ० १० १०] चित्रमेकानेकरूपम्; तदततीति चित्रात् - एकानेकरूपव्यापि अनेकान्तात्मकमित्यर्थः । सर्व ] : अर्थात् प्रमेयत्व, प्रमाण का विषय प्रमेयपना होने से इसप्रकार हेतु अर्थ में पंचमी का तस् प्रत्यय जोड़कर साधन [ हेतु निर्देश "परान्तद्योतितोद्दीप्तमितीतस्वात्मकत्वतः” किया है । इस पत्र स्थित अनुमान वाक्य में दृष्टांत आदि अंग नहीं है तो भी तु स्वसाध्य का गमक है, " एतद्द्वयमेवानुमानांगंनोदाहरणम्" [ परीक्षामुख ३।३७ ] इस सूत्र में निश्चित किया जा चुका है कि अनुमान के दो ही [ प्रतिज्ञा और हेतु] अंग होते हैं, उदाहरण अनुमान का अंग नहीं है । हेतु का गमकपना श्रन्यथानुपपत्ति के बल से ज्ञात हो जाता है, वह अन्यथानुपपत्ति उपर्युक्त पत्रवाक्य के हेतु में [ प्रमेयत्व ] मौजूद है, सर्वथा एकान्त रूप नित्यादि प्रमाण के गोचर नहीं है, इस बात का निर्णय विषय परिच्छेद में हो चुका है । यह अवश्य ज्ञातव्य है कि अनुमान के अंग प्रतिपाद्य [ शिष्यादि ] के अभिप्रायानुसार हुआ करते हैं. अतः पत्र वाक्य में दो के बजाय तीन आदि अंग भी सम्भव हैं। आगे इसीको दिखाते हैं- पत्र परीक्षा ग्रंथ में पृष्ठ दस पर पत्र वाक्य में तीन अंग या चार अथवा पांच अंग का निर्देश बताया गया है । "चित्राद्यदन्तराणीयं [ प्रतिज्ञा ] आरेकान्तात्मकत्वत: [ हेतु ] यदित्थं न तदित्थं न यथा अकिञ्चित् " यह तीन अंग वाला अनुमान प्रयोग है इसमें " तथा च इदं" इतना जोड़ने पर किसी पत्र के चार अंग होते हैं, एवं " तस्मात् तथा" इतना जोड़ने पर पांच श्रवयव होते हैं । अब अनुमान के इन वाक्यों का अर्थ किया जाता है - चित्र एक अनेक रूप को कहते हैं उसको 'प्रतति' इति चित्रात् अर्थात् एकानेक व्यापक प्रनेकान्तात्मना । सर्व, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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