Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 715
________________ ६७२ प्रमेयकमलमार्त्तण्डे एवंभूताश्रयणाद्वा प्रस्थादिक्रियापरिणतस्यैवार्थस्य प्रस्थादित्वं नान्यस्य प्रतिप्रसङ्गादिति । तथा स्यादुभयं क्रमापितोभयनयार्पणात् । स्यादवक्तव्यं सहापितोभयनयाश्रयगात् एवमवक्तव्योत्तराः शेषास्त्रयो भङ्गा यथायोगमुदाहार्याः । ननु चोदाहृता नयसप्तभंगी । प्रमाणसप्तभंगीतस्तु तस्याः किङ्कृतो विशेष इति चेत् ? करते हुए दो मूल भंग बनाकर सप्तभंगी बना लेना । इसीप्रकार संग्रह की अपेक्षा विधि कल्पना कर ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, और एवंभूत नयों की अपेक्षा नास्तित्व मानकर अन्य चार सप्तभंगियां बना लेना । इनप्रकार संग्रहनय की व्यवहार आदि के साथ कथन कर देने से एक एक के प्रति एक एक सप्तभंगी होती हुई पांच सप्तभंगियां हुईं तथा व्यवहार की अपेक्षा अस्तित्व कल्पना कर और ऋजुसूत्र की अपेक्षा नास्तित्व को मानकर एक सप्तभंगी बनाना । इसीप्रकार व्यवहारनयकी अपेक्षा अस्तित्व मानकर शब्द, समभिरूढ और एवंभूत से नास्तित्व कल्पते हुये तीन सप्तभंगियां और भी बना लेना । ये व्यवहारनयकी ऋजुसूत्र आदि के साथ बन चार सप्तभंगियां हुई तथा ऋजुसूत्र की अपेक्षा विधिकल्पना के अनुसार शब्द प्रादिक तीन नयों के साथ निषेध कल्पना कर दो दो मूल भंग बनाते हुये ऋजुसूत्र की शब्द प्रादि तीन के साथ तीन सप्तभंगियां हुई तथा शब्दनयकी अपेक्षा विधिकल्पना कर और समभिरूढ के साथ निषेध कल्पना करते हुये एक सप्तभंगी बनाना । इसीप्रकार शब्द द्वारा विधि और एवंभूत द्वारा निषेध कल्पना कर सप्तभंगी होगी तथा समभिरूढ की अपेक्षा अस्तित्व और एवंभूत की अपेक्षा नास्तित्व लेकर सप्तभंगी बना लेना । इसप्रकार स्वकीय पक्ष हो रहे पूर्व पूर्व नयों की अपेक्षा विधि और प्रतिकूल पक्ष माने गये उत्तर उत्तर नयों की अपेक्षा प्रतिषेधकल्पना करके सात मूल नयों की इक्कीस सप्तभंगियां हो जाती हैं । ऐसे ही प्रागे चलकर नंगम आदि के प्रभेद करके एक सौ सतरह सप्तभंगी तथा उत्तरोत्तर प्रभेदों की अपेक्षा एक सौ पचहत्तर सप्तभंगी सम्भव हैं । शंका- नयसप्तभंगी का प्रतिपादन तो हुआ किंतु प्रमाण सप्तभंगी और इस नयसप्तभंगी में क्या विशेषता है अथवा भेद या अंतर है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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