Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 721
________________ ६७८ ज्ञासा वा तन्निमित्तः प्रश्नो वा वस्तुन्येकत्र सप्तविधवाक्यनियमहेतुः । इत्युपपन्नेयम् - प्रश्नवशादेकवस्तुन्यविरोधेन विधिप्रतिषेधकल्पना सप्तभङ्गी । 'अविरोधेन' इत्यभिधानात् प्रत्यक्षादिविरुद्ध विधिप्रतिषेधकल्पनायाः सप्तभङ्गीरूपता प्रत्युक्ता, 'एकवस्तुनि ' इत्यभिधानाच्च श्रनेकवस्त्वाश्रयविधिप्रतिषेधकल्पनाया इति । ॥ नयविवे वनं समाप्तः ॥ धर्म ही सिद्ध होते हैं और उनके सिद्ध होने पर उनके विषयरूप संशय सात प्रकार का, उसके निमित्त से होने वाली जिज्ञासा सात प्रकार की एवं उसके निमित्त से होने वाला प्रश्न सात प्रकार सिद्ध हो जाता है । इसलिये एक वस्तु में सात प्रकार के वाक्यों का नियम है । इसतरह 'प्रश्नवशात् एक वस्तुनि अविरोधेन विधि प्रतिषेध कल्पना सप्तभंगी' प्रश्न के वश से एक वस्तु में विरोध नहीं करते हुए विधि और प्रतिषेध की कल्पना करना सप्तभंगी है । यह सप्तभंगी का लक्षण निर्दोष सिद्ध हुआ । सप्तभंगी के लक्षण में विरोधेन - विरोध नहीं करते हुए यह पद है उससे प्रत्यक्षादि प्रमाण से बाधित या विरुद्ध जो विधि और प्रतिषेध की कल्पना है वह सप्तभंगी नहीं कहलाती ऐसा निश्चय होता है । तथा एक वस्तुनि - एक वस्तु में इस पद से अनेक पृथक् पृथक् वस्तुओं का श्राश्रय लेकर विधि और प्रतिषेध की कल्पना करना मना होता है अर्थात् एक ही वस्तु में विधि आदि को लेकर सप्तभंग किये जाते हैं अनेक वस्तुओं का प्राश्रय लेकर नहीं । ॥ नय विवेचन एवं सप्तभंगी विवेचन समाप्त ॥ प्रमेय कमलमार्त्तण्डे Jain Education International Ne For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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