________________
६६२
प्रमेयकमलमार्तण्डे ऋजु प्राञ्जलं वर्तमानक्षणमात्रं सूत्रयतीत्यजुसूत्र: 'सुखक्षणः सम्प्रत्यस्ति' इत्यादि । द्रव्यस्य सतोप्यनर्पणात्, अतीतानागतक्षणयोश्च विनष्टानुत्पन्नत्वेनासम्भवात् । न चैवं लोकव्यवहारविलोपप्रसङ्गः; नयस्याऽस्यैवं विषयमात्रप्ररूपणात् । लोकव्यवहारस्तु सकल नयसमूहसाध्य इति ।
यस्तु बहिरन्तर्वा द्रव्यं सर्वथा प्रतिक्षिपत्यखिलार्थानां प्रतिक्षणं क्षणिकत्वाभिमानात् स तदाभासः प्रतीत्यतिक्रमात् । बाघविधुरा हि प्रत्यभिज्ञानादिप्रतीतिर्बहिरन्तश्चैकं द्रव्यं पूर्वोत्तरविवर्त्तवत्ति प्रसाधयतीत्युक्तमूर्खतासामान्यसिद्धिप्रस्तावे । प्रतिक्षणं क्षणिकत्वं च तत्रैव प्रतिव्यूढमिति ।
नयरूप ज्ञान हो चाहे प्रमाणरूप ज्ञान हो उसमें प्रमाणता तभी स्वीकृत होती है जब उनके विषयभूत पदार्थ व्यवहार के उपयोगी या अर्थ क्रिया वाले हों । अस्तु ।
___ऋजुसूत्रनय का लक्षण-ऋजु स्पष्टरूप वर्तमान मात्र क्षण को पर्याय को जानने वाला ऋजु सूत्रनय है । जैसे इस समय सुख पर्याय है इत्यादि । यहां प्रतीतादि द्रव्य सत् है किन्तु उसकी अपेक्षा नहीं है, क्योंकि वर्तमान पर्याय में अतीत पर्याय तो नष्ट हो चुकने से असम्भव है और अनागत पर्याय अभी उत्पन्न ही नहीं हुई है। इस तरह वर्तमान मात्र को विषय करने से लोक व्यवहार के लोप की आशंका भी नहीं करनी चाहिए, यहां केवल इस नय का विषय बताया है। लोक व्यवहार तो सकल नयों के समुदाय से सम्पन्न होता है ।।
__ ऋजुसूत्राभास का लक्षण-जो अन्तस्तत्त्व प्रात्मा और बहिस्तत्त्व प्रजीवरूप पुद्गलादिका सर्वथा निराकरण करता है अर्थात् द्रव्य का निराकरण कर केवल पर्याय को ग्रहण करता है, सम्पूर्ण पदार्थों को प्रतिक्षण के अभिमान से सर्वथा क्षणिक ही मानता है वह अभिप्राय ऋजुसूत्राभास है। क्योंकि इसमें प्रतीति का उलंघन है । प्रतीति में आता है कि निधि प्रत्यभिज्ञान प्रमाण अंतरंग द्रव्य और बहिरंग द्रव्य को पूर्व व उत्तर पर्याय युक्त सिद्ध करते हैं, इसका विवेचन ऊर्ध्वतासामान्य की सिद्धि करते समय हो चुका है। तथा उसी प्रसंग में प्रतिक्षण के वस्तु के क्षणिकत्व का भी निरसन कर दिया है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org