Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 699
________________ २१ अथ षष्ठः परिच्छेद : नयविवेचनम् ननूक्तं प्रमाणेतरयोर्लक्षणमक्षूणं नयेतरयोस्तु लक्षणं नोक्तम्, तच्चावश्यं वक्तव्यम्, तदवचने विनेयानां नाऽविकला व्युत्पत्तिः स्यात् इत्याशङ्कमानं प्रत्याह सम्भवदन्यद्विचारणीयम् || ६ |७४ ।। इति । सम्भवद्विद्यमानं कथितात्प्रमाणतदाभासलक्षणादन्यत् नयनयाभासयोर्लक्षणं विचारणीयं नयनिष्ठ दिग्मात्र प्रदर्शनपरत्वादस्य प्रयासस्येति । तल्लक्षणं च सामान्यतो विशेषतश्च सम्भवतीति यहां पर कोई विनीत शिष्य प्रश्न करता है कि प्राचार्य माणिक्यनन्दी ने प्रमाण और प्रमाणाभासों को निर्दोष लक्षण प्रतिपादित कर दिया किन्तु नय और नयाभासों का लक्षण अभी तक नहीं कहा उसको अवश्य कहना चाहिए, क्योंकि उसके न कहने पर शिष्यों को पूर्ण ज्ञान नहीं होगा ? इसप्रकार शंका करने वाले शिष्य के प्रति प्राचार्य कहते हैं – “संभवदन्यद्विचारणीयम्" अन्य जो नयादि हैं उसका भी विचार कर लेना चाहिये । संभवद् पद का अर्थ है विद्यमान पूर्व में कहे हुए प्रमाण और प्रमाणाभासों के जो लक्षण हैं उनसे अन्य जो नय और नयाभासों के लक्षण हैं उनका विचार नयों के ज्ञाता पुरुषों को करना चाहिये, क्योंकि इस परीक्षामुख ग्रंथ में दिग्मात्र प्रतिसंक्षेप से कथन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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