Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 682
________________ जय-पराजयव्यवस्था ६३६ दिष्टप्रकरणसमा निग्रहस्थानम् । इत्यत्रापि विरुद्धहेतुद्भावने प्रतिपक्षसिद्धेनिग्रहाधिकरणत्वं युक्तम् । प्रसिद्धाद्युद्भावने तु प्रतिवादिना प्रतिपक्षसाधने कृते तद्युक्तं नान्यथेति । भास को निग्रहस्थान कह सकते हैं किन्तु प्रसिद्ध आदि हेत्वाभास के प्रगट होने पर भी तदनन्तर यदि प्रतिवादी प्रतिपक्ष की सिद्धि कर देता है तब तो उक्त हेत्वाभास निग्रहस्थान बन सकते हैं, अन्यथा नहीं । भावार्थ - यहां तक नैयायिक द्वारा मान्य २२ निग्रहस्थानों का निरसन किया है । चतुरंग [ सभ्य, सभापति, वादी और प्रतिवादी ] वाद के समय प्रथम पक्ष स्थापित करने वाला वादी यदि एक प्रतिज्ञा को कहकर पुनः उसको छोड़ देता है या अन्य प्रतिज्ञा करता है, तो वह वादी के पराजय का कारण है, ऐसा नैयायिक का कहना है, किन्तु वह समीचीन नहीं है प्रतिज्ञा हानि आदि स्वल्प स्वल्प दोष होने मात्र से वादी का पराजय या प्रतिवादी का विजय नहीं हुआ करता, वादी ने प्रतिज्ञा हानि आदि की और उसको ज्ञातकर प्रतिवादी ने उक्त दोष प्रगट भी कर दिया तो इतने मात्र से प्रतिवादी का विजय नहीं होगा, इसके लिये तो उसे अपना जो प्रतिपक्ष है उसको सभ्य यादि के आगे सभा में सिद्ध करना होगा स्वपक्ष सिद्ध होने पर ही प्रतिवादी का जय माना जायगा । इसी प्रकार वादी ने कदाचित् सदोष अनुमान उपस्थित किया है और प्रतिवादी ने उसका प्रकाशन नहीं किया तो उतने मात्र से जय या पराजय नहीं हो सकता । तथा सदोष अनुमान वाक्य बोलने के अनेक प्रकार हो सकते हैं इसलिये नैयायिक का यह आग्रह कि निग्रहस्थान बाईस ही हैं समीचीन नहीं है न उन निग्रहस्थानों द्वारा किसी का जय निश्चित हो सकता है, निग्रहस्थानों के पूर्व नैयायिकों ने तीन प्रकार के छल [ वाक्छल, सामान्य छल, और उपचार छल ] एवं चौबीस प्रकार जातियों का निरूपण कर उनके द्वारा उनके प्रयोक्ता वादी या प्रतिवादी का निग्रह होना कहा था, उस प्रकरण में भी आचार्य ने यही सिद्ध कर दिया कि छल या जाति मात्र से जय पराजय की व्यवस्था नहीं होती है । अंत में यही निर्णय किया है कि वादी प्रतिज्ञा हानि, प्रतिज्ञा विरोध यादि रूप सदोष वाक्य कहे और प्रतिवादी उनका प्रकाशन करे अथवा नहीं भी करे तो भी उससे वादी का पराजय नहीं होगा न प्रतिवादी का जय । इसीप्रकार प्रतिवादी ने वादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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