Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

Previous | Next

Page 674
________________ ६३१ ; नुष्ठानवैयर्थ्यम् । धर्माधर्मयोश्चाप्रतिनियमप्रसङ्गः प्रधार्मिके धार्मिके च तच्छन्दोपलम्भात् । भवतु वा तत्क्रमादर्थप्रतीतिः, तथाप्यर्थप्रत्ययः क्रमेण स्थितो येन वाक्येन व्युत्क्रम्यते तन्निरर्थकं न त्वऽप्राप्तकाल - मिति । जय-पराजयव्यवस्था “शब्दार्थयोः पुनर्वचनं पुनरुक्तमन्यत्रानुवादात् ।" [ न्यायसू० ५।२।१४ ] तत्रार्थपुनरुक्तमेवोपपन्न ं न शब्दपुनरुक्तम् ; अर्थभेदेशब्दसाम्येप्यस्यासम्भवात् " हसति हसति स्वामिन्युच्चैरुदत्यति रोदिति, कृतपरिकरं स्वेदोद्गारि प्रधावति धावति । गुणसमुदितं दोषापेतं प्रणिन्दति निन्दति, धनलवपरिक्रीतं यन्त्रं प्रनृत्यति नृत्यति ।' " Jain Education International अधर्म में प्रतिनियम भी नहीं बन पायेगा, क्योंकि धार्मिक पुरुष और प्रधार्मिक पुरुष दोनों में संस्कृत [ तथा अन्य ] शब्द की प्रवृत्ति देखी जाती है । दुर्जन संतोष न्याय से मान भी लेवे कि शब्द के क्रम से अर्थबोध होता है, तो भी जिस वाक्य का क्रम से उच्चारण करने पर ही अर्थबोध होता हो उसका क्रम भंग - विपरीत क्रम होना सदोष है किन्तु यह तो निरर्थक नामा दोष या निग्रहस्थान कहलायेगा न कि अप्राप्तकाल निग्रहस्थान | इसप्रकार प्रप्राप्तकाल निग्रहस्थान का निग्रह आचार्य ने कर दिया । [ वादन्यायपृ० १११] ग्यारहवां निग्रहस्थान - अनुवाद को छोड़कर अन्य वाद आदि में शब्द या अर्थ का पुनः प्रतिपादन करना पुनरुक्तनामा निग्रहस्थान है । इस पुनरुक्त के विषय में हमारा [जैन का ] कहना है कि अर्थ को पुन: कहना ही पुनरुक्त दोष है शब्द को पुनः कहना पुनरुक्त दोष नहीं है, देखा जाता है कि शब्दों का साम्य होता है किंतु उनका अर्थ भिन्न भिन्न होता है अतः शब्दों को पुनः कहने में पुनरुक्त दोष मानना असंभव है । शब्दों की पुनरुक्तता का सुन्दर श्लोक प्रस्तुत करते हैं - हसति हसति स्वामिन्युच्चैरुदत्यतिरोदिति, कृतपरिकरं स्वेदोद्गारि प्रधावति धावति । गुणसमुदितं दोषापेतं प्ररिणन्दति निन्दति, धनलवपरिक्रीतं यंत्रं प्रनृत्यति नृत्यति ॥ | १ || भृत्य [ नौकर ] अपने स्वामी के हंसने पर तो हंसता है, स्वामी के रोने पर रोता है, स्वामी के दौड़ने पर सामान सहित पसीना बहाता हुआ दौड़ता है, गुणसमुदाययुक्त एवं दोष रहित पुरुष की यदि स्वामी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762