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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
अनैकान्तिकता चात्र हेतोः; तथाहि - 'तस्करोयं पुरुषत्वात्प्रसिद्धतस्करवत्' इत्युक्त 'त्वमपि तस्कर: स्यात्' इति हेतोरनैकान्तिकत्वमेवोक्तं स्यात् । स चात्मीयहेतोरात्मनैवानैकान्तिकत्वं दृष्ट्वा प्राहभवत्पक्षेप्ययं दोषः समान:- त्वमपि पुरुषोसि इत्यनैकान्तिकत्वमेवोद्भावयतीति ।
"हीनमन्यतमेनाप्यवयवेन न्यूनम् ।" [ न्यायसू० ५।२।१२] यस्मिन्वाक्ये प्रतिज्ञादीनामन्यतमोऽवयवो न भवति तद्वाक्यं हीनं नाम निग्रहस्थानम् । साधनाभावे साध्यसिद्धेरभावात्, प्रतिज्ञादीनां च पञ्चानामपि साधनत्वात्; इत्यप्यसमीचीनम् ; पञ्चावयवप्रयोगमन्तरेणापि साध्यसिद्धेः प्रतिपादितत्वात्, पक्षहेतुवचनमन्तरेणैव तत्सिद्धेरभावात् अतस्तद्धीनमेव न्यूनं निग्रहस्थानमिति ।
" हेतूदाहरणाधिकमधिकम् ।" [ न्यायसू० ५ | २|१३ ] यस्मिन्वाक्ये द्वौ हेतू द्वो वा दृष्टान्तौ
हुआ परमत को स्वीकारता है, अतः उसको मतानुज्ञा निग्रहस्थान प्राप्त होता है । किंतु यह भी अज्ञान निग्रहस्थान से पृथक् नहीं है । तथा इसतरह के कथन में हेतु की अनैकान्तिकता सिद्ध होती है । आगे इसीको दिखाते हैं, यह चोर है पुरुष होने से प्रसिद्ध तस्कर के समान । ऐसा वादी के कहने पर प्रतिवादी यदि कहे कि फिर तुम तस्कर हो, इस तरह पुरुषत्व हेतु की अनैकान्तिकता कही । अब इस पर वादी अपने हेतु में अपने द्वारा ही अनैकान्तिकता प्राती देखकर बोलता है कि आपके पक्ष में भी दोष समान है, तुम भी पुरुष हो, इसतरह वह प्रनैकान्तिक दोष ही प्रगट कर देता है ।
उन्नीसवां निग्रहस्थान — अनुमान के कोई अवयव कम करके कथन करना न नामका निग्रहस्थान है । जिस अनुमान वाक्य में प्रतिज्ञा, हेतु आदि में से कोई अवयव नहीं हो तो वह वाक्य हीन निग्रहस्थान कहलायेगा । क्योंकि साधन के प्रभाव में साध्य की सिद्धि नहीं होती और प्रतिज्ञा हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन ये पांचों ही साधन कहलाते हैं । नैयायिक का यह मंतव्य भी असत् है, उक्त पांचों अवयवों के बिना केवल दो अवयवों से भी साध्यसिद्धि होती है, हां पक्ष और हेतु इन दो के कथन के बिना तो साध्य की सिद्धि असम्भव है, इसलिये यदि इन दो में से एक कम कहा जाय तो हीन निग्रहस्थान बन सकता है ।
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बीसवां निग्रहस्थान - हेतु और उदाहरण को अधिक देना अधिक नामका निग्रहस्थान है । जिस अनुमान वाक्य में दो हेतु हों अथवा दो दृष्टांत दिये हों वह
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