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प्रमेयकमल मार्त्तण्डे
तन्नानित्यता शब्दे नित्यत्वप्रत्यवस्थितेनिराकर्तुं शक्येति ।
“प्रयत्नानेककार्यत्वात्कार्यसमा जातिः ।" [ न्यायसू० ५।१।३७ ] यथा 'अनित्यः शब्द: प्रयत्नानन्तरीयकत्वात्' इत्युक्ते परः प्रत्यवतिष्ठते - प्रयत्नानन्तरं घटादीनां प्रागऽसतामात्मलाभोपि प्रतीत:, आवारकापनयनात् प्राक्सतामेवाभिव्यक्तिव । तत्कथमतः शब्दस्यानित्यतेति ?
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दूषणाभासता चास्याः; प्रकृतसाधनाप्रतिबन्धित्वादेव | शब्दस्य हि प्रागसतः स्वरूपलाभलक्षणं जन्मैव प्रयत्नानन्तरीयकत्वमुपपद्यते प्रागनुपलब्धिनिमित्तस्याभावेप्यनुपलब्धितः सत्त्वासम्भवादिति ।
प्रतिवादी शब्द के इस अनित्यत्व को स्वीकार नहीं करता तो अनित्य का निषेध प्राश्रय रहित हो जायगा, श्रर्थात् " शब्द अनित्य है" इस प्रतिज्ञा को नहीं मानने पर ये विकल्प किसके आधार पर उठाये जायेंगे कि शब्द में रहने वाला प्रनित्य धर्म नित्य है अथवा अनित्य है ? इसलिये शब्द के अनित्यपने का निराकरण नित्यत्वरूप उलाहना द्वारा करना शक्य नहीं है ।
कार्यसमाजाति -प्र - प्रयत्न के अनन्तर उत्पन्न होने वाले कार्य अनेक तरह के होते हैं इसतरह कहकर वादी के प्रयत्नानन्तरीयकत्व हेतु में दोष देना कार्यसमाजाति है । जैसे वादी ने अनुमान कहा - " शब्द अनित्य है प्रयत्न के अनन्तर उत्पन्न होने से” इस पर प्रतिवादी कटाक्ष करता है कि एक प्रयत्नानन्तरीयकत्व वह है जो प्रयत्न के पहले घटादि की तरह प्रसत् रहता है और प्रयत्न के अनन्तर उत्पन्न होता है तथा दूसरा प्रयत्नानन्तरीयकत्व वह है जो प्रावरण को हटाने के पहले सत् ही रहता है और अनन्तर अभिव्यक्त होता है । इसतरह प्रयत्नानन्तरीयकत्व से शब्द की अनित्यता कैसे सिद्ध हो सकती है ? अर्थात् प्रयत्न के अनन्तर होना तो सत्त्वभूत पदार्थ का भी होता है और असत्त्वभूत पदार्थ का भी होता है अतः इसके द्वारा अनित्यपना सिद्ध नहीं होवेगा |
यह कार्यसमाजाति दोष भी दोषाभास है, यह भी प्रकृत साधन का प्रतिबंधक नहीं है । शब्द पहले ग्रसत् रहता है और प्रयत्न के अनन्तर उत्पन्न होता है इसलिये इस शब्द के ही प्रयत्नानंतरीयकत्व सुघटित होगा । शब्द उत्पन्न होने के पहले अनुपलब्ध रहता है उसका कारण शब्द को श्रावृत्त करने वाला प्रावरण [ आवारक
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