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प्रमेयक मलमार्त्तण्डे
विशेषणासिद्धो यथा - प्रनित्यः शब्दवाक्षुषत्वे सति सामान्यवत्त्वात् । आश्रयासिद्धो यथा - प्रस्ति प्रधानं विश्वपरिणामित्वात् । आश्रयैकदेशासिद्धो यथा - नित्याः परमाणुप्रधानात्मेश्वरा प्रकृतकत्वात् । व्यर्थ विशेष्यासिद्धो यथा - अनित्याः परमाणवः कृतकत्वे सति सामान्यवत्त्वात् ।
व्यर्थविशेषणासिद्धो यथा- प्रनित्या: परमाणवः सामान्यवत्त्वे सति कृतकत्वात् । व्यथं विशेष्यविशेषणश्चासावसिद्धश्चेति ।
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नामका हेत्वाभास कहलाया ।
विशेषणसिद्ध हेत्वाभास का उदाहरण - शब्द अनित्य है, क्योंकि वह चाक्षुष होकर सामान्यवान है, यहां चाक्षुष को विशेषण और सामान्यवान को विशेष्य बताया, शब्द चाक्षुष होता नहीं अतः यह विशेषण असिद्ध नामा हेत्वाभास बना ।
आश्रयासिद्ध हेत्वाभास का दृष्टांत - सांख्याभिमत प्रधान तत्व है, क्योंकि वही विश्वरूप परिणमन कर गया है इस अनुमान का विश्वपरिणामित्व हेतु आश्रय से विहीन है, क्योंकि वास्तविकरूप से प्रधान तत्व की सिद्धि नहीं होती है ।
जिस हेतुका प्राय एक देश असिद्ध हो उसका उदाहरण - परमाणु, प्रधान, आत्मा और ईश्वर ये चारों नित्य हैं, क्योंकि प्रकृत्रिम हैं यहां जो अकृतकत्वात् हेतु है वह अपने पक्षभूत परमाणु यदि चारों में न रहकर परमाणु और ग्रात्मा इन दो में ही रहता है क्योंकि प्रधान और ईश्वर नाम के कोई पदार्थ हैं नहीं, अतः यह हेतु प्राश्रय एक देश प्रसिद्ध हेत्वाभास कहलाया [ तथा परमाणु सर्वथा नित्य नहीं होने से प्रकृतकत्व हेतु अनुमान बाधित पक्ष वाला भी है ] ।
जिसका विशेष्य व्यर्थ हो वह व्यर्थ विशेष्यासिद्ध हेतु है जैसे परमाणु प्रनित्य है, क्योंकि कृतक होकर सामान्यवान है, यह सामान्यवत्वात् ऐसा जो हेतु का विशेष्य भाग है वह व्यर्थ [बेकार ] का है क्योंकि कृतक - किया हुआ इतने विशेषण से ही साध्य सिद्ध हो जाता है |
जिसका विशेषण व्यर्थ हो वह व्यर्थविशेषणासिद्ध हेत्वाभास है जैसे - - परमाणु अनित्य हैं, क्योंकि सामान्यवान होकर कृतक हैं यहां कृतकत्वरूप विशेष्य से ही साध्य
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