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प्रमेयकमलमार्तण्डे
विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्त तन्नापौरुषेयम् ॥ ४५ ।। विपरीतो व्यतिरेको व्यावृत्तिप्रदर्शनं यस्येति । यथा यन्नामूर्तं तन्नापौरुषेयमिति । 'यन्नापौरुषेयं तनामूर्तम्' इति हि साध्यव्यतिरेके साधनव्यतिरेकः प्रदर्शनीयस्तथैव प्रतिबन्धादिति ।
करते हैं। दूसरा दृष्टांत इन्द्रिय सुख का दिया इसमें अपौरुषेय की व्यावृत्ति तो है किंतु अमूर्त की व्यावृत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि इन्द्रिय सुख अमूर्त ही है। तीसरा दृष्टांत आकाश का है आकाश में न अपौरुषेय की व्यावृत्ति हो सकती है और न अमूर्त्तत्व की व्यावृत्ति हो सकती है, अाकाश तो अपौरुषेय भी है और अमूर्त भी है, अतः आकाश का दृष्टांत साध्य साधन दोनों के व्यतिरेक से रहित ऐसा व्यतिरेक दृष्टान्ताभास कहा जाता है । व्यतिरेक दृष्टान्ताभास का और भी उदाहरण देते हैं ।
विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्त तन्नापौरुषेयम् ।।४५।।
अर्थ-विपरीत-उलटा व्यतिरेक बतलाते हुए व्यतिरेक दृष्टान्त देना भी व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, जैसे-जो अमूर्त नहीं है वह अपौरुषेय नहीं होता । विपरीत है व्यतिरेक अर्थात् व्यावृत्ति का दिखाना जिसमें उसे कहते हैं विपरीत व्यतिरेक, इस प्रकार विपरीत व्यतिरेक शब्द का विग्रह समझना । वह विपरीत इसप्रकार होता है कि "जो अमर्त्त नहीं है वह अपौरुषेय नहीं होता" यहां व्यतिरेक तो ऐसा करना चाहिये था कि साध्य के हटने पर साधन का हटाना दिखाया जाय अर्थात् जो अपौरुषेय नहीं है वह अमूर्त नहीं होता, इसीप्रकार कहने से ही व्यतिरेक व्याप्ति सही होती है, क्योंकि साध्य साधन का इसी तरह का अविनाभाव होता है।
भावार्थ-शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है, इसप्रकार किसी मीमांसकादि ने अनुमान वाक्य कहा, फिर व्यतिरेक व्याप्ति दिखाते हुए दृष्टांत दिया कि “जो जो अमूर्त नहीं है वह वह अपौरुषेय नहीं होता, जैसे परमाणु तथा इन्द्रिय सुख और आकाश अमत नहीं होने से अपौरुषेय नहीं है" सो इसतरह किसी व्यामोह वश उलटा व्यतिरेक और उलटा ही दृष्टांत देवे तो वह व्यतिरेक दृष्टांताभास कहलाता है, यदि सिर्फ दृष्टांत ही साध्य साधन के व्यतिरेक से रहित है तो वह व्यतिरेक दृष्टांताभास है और यदि मात्र व्यतिरेक व्याप्ति उलटी दिखायी तो भी वह दृष्टांताभास कहलाता है।
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