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प्रमेयकमलमार्तण्डे
मस्याश्च दूषणाभासत्वम्-शब्दाऽनित्यत्वाऽप्रतिबन्धित्वात् । यथैव हि पुरुषे शिरःसंयमनादिना विशेषेण निश्चिते सति न स्थाणुपुरुषसाधादूर्ध्वत्वात् संशयस्तथा प्रयत्नानन्तरीयकत्वेन विशेषेणानित्ये शब्दे निश्चिते न घटसामान्यसाधादेन्द्रियिकत्वात् संशयो युक्त इति ।
__ "उभयसाधात्प्रक्रियासिद्धः प्रकरणसमा जातिः।” [ न्यायसू० ५११।१६ ] 'यथा अनित्य! शब्द : प्रयत्नानन्तरीयकत्वाद् घटवत्' इत्यनित्यसाधात्प्रयत्नानन्तरीयकत्वाच्छब्दस्यानित्यतां कश्चित्साधयति । अपरः पुनर्गोत्वादिना सामान्येन साधात्तस्य नित्यताम् इति, अतः पक्षे विपक्षे च प्रक्रिया समानेति ।
ईदृश्यं च प्रक्रियाऽन तिवृत्त्या प्रत्यवस्थानम युक्तम् ; विरोधात् । प्रतिपक्षप्रक्रिया सिद्धौ हि प्रतिषेधो विरुध्यते । प्रतिषेधोपपत्तौ तु प्रतिपक्षप्रक्रियासिद्धिाहन्यते इति ।
किन्तु यह जातिदूषण भी केवल दूषणाभास है, क्योंकि उपर्युक्त पक्षभूत शब्द में अनित्यपने का कोई प्रतिबन्ध नहीं है, जिसप्रकार पुरुष में शिर का संयम न करना
आदि विशेषता से पूरुषपने का निश्चय होने पर पुन: पुरुष और स्थाणु [हूट] में समानरूप से होने वाले ऊर्ध्वत्व धर्म से संशय नहीं होता है, उसीप्रकार शब्द में प्रयत्न के अनन्तर उत्पन्न होनारूप विशेषता से अनित्यपना निश्चित होनेपर घट और सामान्य में समानता से होने वाले इन्द्रियग्राह्यत्व से संशय होना अयुक्त है ।
प्रकरणसमाजाति-दोनों [ नित्य अनित्य या सामान्य तथा घट ] के साथ साधर्म्य होने के कारण दोनों की प्रक्रिया सिद्ध होना प्रकरणसमाजाति है। जैसे शब्द अनित्य है प्रयत्न के अनन्तर होने से घट के समान, इसप्रकार किसी वादी ने अनुमान प्रयोग किया, इसमें प्रयत्न के अनन्तर होना रूप हेतु अनित्य के साथ साधर्म्य रखता है अतः उसके द्वारा वादी ने शब्द की अनित्यता को सिद्ध किया है। इसपर प्रतिवादी दोष उठाता है कि शब्द में इन्द्रियग्राह्यत्व है वह गोत्वादि सामान्य के साथ साधर्म्य रखता है अतः उस साधर्म्य से शब्द में नित्यता सिद्ध होती है। इसप्रकार जहां पक्ष और विपक्ष में समान प्रक्रिया पायी जाय वह प्रकरणसमा जाति है।
___ इस जाति का निराकरण इसतरह होता है कि प्रक्रिया का अतिक्रमण नहीं होने से अर्थात् समान प्रक्रिया होने से ऐसी उलाहना देना अयुक्त है, विरोध दोष होगा, देखिये, प्रतिपक्ष की प्रक्रिया [अनुमान का तरीका] सिद्ध हो जाने पर तो उस प्रतिपक्ष
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