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तदाभासस्वरूपविचारः
५५१ व्यतिरेके दृष्टान्ताभासाः
व्यतिरेके असिद्धतद्वयतिरेकाः परमाण्विन्द्रियसुखाकाशवत् ॥ ४४ ॥
प्रसिद्धतद्वयतिरेका:-प्रसिद्धस्तेषां साध्यसाधनोभयानां व्यतिरेको [ व्या ] वृत्तिर्येषु ते तथोक्ताः । यथाऽपौरुषेयः शब्दोऽमूर्तत्वादित्युक्त्वा यन्नापौरुषेयं तन्नामूर्तं परमाण्विन्द्रियसुखाकाशवदिति व्यतिरेकमाह । परमाणुभ्यो ह्यमूर्तत्वव्यावृत्तावप्यऽपौरुषेयत्वं न व्यावृत्तमपौरुषेयत्वात्तेषाम् । इन्द्रियसुखे त्वपौरुषेयत्वव्यावृत्तावप्यमूर्त्तत्वं न व्यावृत्तममूर्त्तत्वात्तस्य । आकाशे तुभयं न व्यावृत्तमपौरुषेयत्वादमूर्त्तत्वाच्चास्येति । न केवलमेत एव व्यतिरेके दृष्टान्ताभासाः किंतु
इत्यादि पदार्थ अपौरुषेय तो अवश्य हैं [ किसी मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं हैं ] किंतु अमूर्त नहीं हैं, इसीलिये विपरीत अन्वय दिखाना दृष्टान्ताभास है। जो अमूर्त है वह अपौरुषेय होता है ऐसा कहना तो घटित होता है किन्तु इससे विपरीत कहना घटित नहीं होता, अतः दृष्टान्त देते समय वादी प्रतिवादी को चाहिए कि वे विपरीत अन्वय न करें और न साध्य आदि से रहित ऐसे दृष्टांत को उपस्थित करें।
अब व्यतिरेक में दृष्टान्ताभास किसप्रकार होते हैं सो बताते हैंव्यतिरेके असिद्ध तद् व्यतिरेकाः परमाण्विन्द्रियसुखाकाशवत् ॥ ४४ ।।
अर्थ-जिस दृष्टान्त में साध्य के व्यतिरेक की व्याप्ति न हो या साधन की अथवा दोनों के व्यतिरेक की व्याप्ति सिद्ध नहीं हो वह व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, उसके तीन भेद होते हैं, साध्य व्यतिरेक रहित, साधन व्यतिरेक रहित, उभय-साध्य साधन व्यतिरेक रहित । प्रसिद्ध है साध्यसाधन और उभय का व्यतिरेक जिनमें उनको कहते हैं प्रसिद्ध तद् व्यतिरेक, इसतरह "प्रसिद्ध तद् व्यतिरेकाः" इस पदका समास विग्रह है, अब क्रमशः इनका उदाहरण प्रस्तुत करते हैं - शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है, इसप्रकार साध्य और हेतु को कहकर व्यतिरेक दृष्टांत बताया कि जो अपौरुषेय नहीं है वह अमूर्त भी नहीं होता जिसप्रकार परमाणु, इन्द्रिय सुख तथा प्राकाश अपौरुषेय नहीं होने से अमूर्त नहीं होते, सो ये तीनों ही दृष्टान्त गलत हैं, इसका खुलासा इस प्रकार है-परमाणुओं से अमूर्त्तत्व तो व्यावृत्त होता है [ परमाणु में प्रमूतत्व नहीं होने से ] किन्तु अपौरुषेयत्व व्यावृत्त नहीं होता, क्योंकि परमाणु अपौरुषेय ही हुआ
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