________________
५५४
प्रमेयकमल मार्तण्डे
बालप्रयोगाभासः पञ्चावयवेषु कियद्धीनता ।। ४६ ।। यथाग्निमानयं देशो धूमवत्त्वात्, यदित्थं तदित्थं यथा महानस इति ॥ ४७ ॥
धूमश्चिायमिति वा ।। ४८ ॥ यो ह्यव्युत्पन्न प्रज्ञोऽनुमानप्रयोगे पञ्चावयवे गृहीतसङ्कतः स उपनयनिगमन रहितस्य निगमनरहितस्य वानुमानप्रयोगस्य तदाभासतां मन्यते । न केवलं कियधीनतैव बालप्रयोगाभासः किंतु तद्विपर्ययश्च-तेषामवयवानां विपर्ययस्तत्प्रयोगाभासो यथा
बालप्रयोगाभासः पंचावयवेषु कियद्धीनता ।।४६।। अर्थ-बाल प्रयोग पांच अवयव सहित होना था उसमें कमी करना बाल प्रयोगाभास है, जैसे यहां अग्नि है [१ साध्य] क्योंकि धूम है [२ हेतु] जहां धम होता है वहां अग्नि अवश्य होती है जैसे रसोई घर [ ३ दृष्टांत ] यहां पर भी धूम है [४ उपनय] अतः अवश्य ही अग्नि है [ ५ निगमन] ये अनुमान के पांच अवयव हैं इनमें से एक या दो आदि अवयव प्रयुक्त नहीं होना बालप्रयोगाभास है ।
यथा अग्निमानयं देशो धमवत्वात् यदित्थं तदित्थं यथा महानसः ।।४७।।
अर्थ – स्वयं माणिक्यनंदी आचार्य प्रयोग करके बतला रहे हैं कि-यदि कोई पुरुष अव्युत्पन्न व्यक्ति के लिये अनुमान के पांच अवयव न बताकर तीन ही बताता है तो वह बाल प्रयोगाभास कहलायेगा अर्थात्-यह प्रदेश अग्नि सहित है, क्योंकि धूम दिखायी दे रहा है, जो इसतरह धूम सहित होता है वह अग्निमान होता है, जैसे रसोई घर । इस अनुमान में तीन ही अवयव हैं आगे के उपनय और निगमन ये दो अवयव नहीं बताये प्रतः यह बालप्रयोगाभास है ।
धूमवांश्चायम् इति वा ।।४।। अर्थ-अथवा उपर्युक्त अनुमान में चौथा अवयव जोड़ना अर्थात् “यह प्रदेश भी धूमवाला है" ऐसे उपनय युक्त चार अवयव वाला अनुमान प्रयोग करना भी बाल प्रयोगाभास कहा जाता है । जो पुरुष अव्युत्पन्न बुद्धि है, जिसको सिखाया हुआ है कि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.