Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमाणे स्वपक्षसाधनायोपन्यस्ते श्रविज्ञाततत्स्वरूपेण तु तदाभासे । प्रतिवादिना वाऽनिश्चित तत्स्वरूपेण दुष्टतया सम्यक्प्रमाणेपि तदाभासतोद्भाविता । निश्चिततत्स्वरूपेण तु तदाभासे तदाभासतोद्भाविता ।
जय-पराजयव्यवस्था
है तो स्वपक्ष की सिद्धि के लिये सत्यप्रमाण उपस्थित करता है, और यदि उन प्रमाणादिका स्वरूप नहीं जाना हुआ है तो वह असत्य प्रमाण अर्थात् प्रमाणाभास को उपस्थित करता है, अब सामने जो प्रतिवादी बैठा है वह यदि प्रमाणादि का स्वरूप नहीं जानता तो वादी के सत्य प्रमाण को भी दुष्टता से यह तो प्रमाणाभास है ऐसा दोषोद्भावन करता है, और कोई अन्य प्रतिवादी यदि है तो वह प्रमाण आदि का स्वरूप जानने वाला होने से वादी के असत्य प्रमाण में ही तदाभासता "तुमने यह प्रमाणाभास उपस्थित किया" ऐसा दोषोद्भावन करता है, अब यदि वादी उस दोषोद्भावन को हटाता है तो उसके पक्षका साधन होता है और प्रतिवाद को दूषण प्राप्त होता है, और कदाचित् वादी अपने ऊपर दिये हुए दोषोद्भावन को नहीं हटाता तब तो उसके पक्षका साधन नहीं हो पाता और प्रतिवादी को भूषण प्राप्त होता है [ अर्थात् प्रतिवादी ने दोषोद्भावन किया था वह ठीक है ऐसा निर्णय होता है ] ।
विशेषार्थ - वस्तुतत्व का स्वरूप बतलाने वाला सम्यग्ज्ञान स्वरूप प्रमाण होता है, प्रमाण के बल से ही जगत के यावन्मात्र पदार्थ हैं उनका बोध होता है, जो सम्यग्ज्ञान नहीं है उससे वस्तु स्वरूप का निर्णय नहीं होता है, जिन पुरुषों का ज्ञान आवरण कर्म से रहित होता है वे ही पूर्णरूप से वस्तु तत्व को जान सकते हैं, वर्तमान में ऐसा ज्ञान और ज्ञान के धारी उपलब्ध नहीं हैं, अतः वस्तु के स्वरूप में विविध मत प्रचलित हुए हैं, भारत में सांख्य, मोमांसक, योग आदि अनेक मत हैं और वे सारे ही स्व स्वमत को सही बतलाते हैं, कुछ शताब्दी पहले इन विविध मत वालों में परस्पर में अपने अपने मतकी सिद्धि के लिये वाद हुआ करते थे, यहां पर उसी वाद के विषय में कथन चलेगा, वाद के चार अंग हैं, वादी - जो सभा में सबसे पहले अपना पक्ष उपस्थित करता है, प्रतिवादी - जो वादी के पक्षको प्रसिद्ध करने का प्रयत्न करता है, सभ्य-वाद को सुनने - देखने वाले एवं प्रश्न कर्ता मध्यस्थ महाशय, सभापति - वाद में कलह नहीं होने देना, दोनों पक्षों को जानने वाला एवं जय पराजय का निर्णय देने वाला सज्जन पुरुष । वादी और प्रतिवादो वे ही होने चाहिये जो प्रमाण और प्रमाणाभास का स्वरूप भली प्रकार से जानते हों, अपने अपने मत में निष्णात हों, एवं अनुमान प्रयोग में
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