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तदाभासस्वरूपविचारः
५३७ अथेदानी विरुद्धहेत्वाभासस्य विपरीतस्येत्यादिना स्वरूपं दर्शयतिविपरीतनिश्चिताविनाभावो विरुद्धः अपरिणामी शब्दः कृतकत्वात् ॥२६॥
साध्यस्वरूपाद्विपरीतेन प्रत्यनीकेन निश्चितोऽविनाभावो यस्यासौ विरुद्धः । यथाऽपरिणामी शब्दः कृतकत्वादिति । कृतकत्वं हि पूर्वोत्तराकारपरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामे नैवाविनाभूतं बहिरन्तर्वा प्रतीतिविषयः सर्वथा नित्ये क्षणिके वा तदभावप्रतिपादनात् ।
ये चाष्टो विरुद्धभेदाः परैरिष्ठास्तेप्येत लक्षणलक्षितत्वाविशेषतोऽत्रैवान्तर्भवन्तीत्युदाहियन्ते । सति सपक्षे चत्वारो विरुद्धाः । पक्षविपक्षव्यापक: सपक्षावृत्तियथा-नित्यः शब्द उत्पत्तिधर्मकत्वात् ।
अब इस समय विरुद्ध हेत्वाभास का कथन करते हैंविपरीतनिश्चिताविनाभावो विरुद्धः, अपरिणामी शब्दः कृतकत्वात् ।।२।।
अर्थ-विपरीत अर्थात् साध्य से विपरीत जो विपक्ष है उसमें जिस हेतु का अविनाभाव निश्चित है वह हेतु विरुद्ध हेत्वाभास कहलाता है, जैसे किसी ने कहा कि शब्द अपरिणामी है, क्योंकि वह कृतक है, सो ऐसा कहना गलत है इस अनुमान का कृतकत्व हेतु साध्य जो अपरिणामी है उसमें न रहकर इससे विपरीत जो परिणामीत्व है उसमें रहता है । साध्य से विपरीत जो विपक्ष है उसके साथ है अविनाभाव जिसका उसे विरुद्ध हेत्वाभास कहते हैं, इसप्रकार "विपरीतनिश्चिताविनाभावः" इस पद का विग्रह है। जैसे किसी ने कहा कि शब्द कृतक होने से अपरिणामी है, सो यह विरुद्ध है, क्योंकि कृतकत्व तो उसे कहते हैं जो पूर्व आकार का परिहार और उत्तर आकार की प्राप्ति एवं स्थितिरूप से परिणमन करता है, इसतरह के परिणामित्व के साथ ही कृतकत्व का अविनाभाव है, बहिरंग घट आदि पदार्थ, अंतरंग प्रात्मादि पदार्थ ये सभी कथंचित् इसीप्रकार से परिणामी होते हुए प्रतिभासित होते हैं, सर्वथा नित्य या सर्वथा क्षणिक में परिणामित्व सिद्ध नहीं होता, ऐसा हमने पहले ही प्रतिपादन कर दिया है। इस विरुद्ध हेत्वाभास के नैयायिकादि परवादी आठ भेद मानते हैं, उनकी कोई पृथक् पृथक् लक्षण भेद से सिद्धि नहीं होती है पाठों का अन्तर्भाव एक में ही करके उनके उदाहरण उपस्थित करते हैं-जिसका सपक्ष मौजूद रहता है ऐसे विरुद्ध हेत्वाभास के चार भेद होते हैं, तथा जिस में सपक्ष नहीं होता ऐसे विरुद्ध हेत्वाभास के चार भेद होते हैं, उनमें से प्रथम ही सपक्ष वाले विरुद्ध
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