Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
पक्षसपक्षवृत्तित्वे सत्यन्यत्र वर्तते स व्यभिचारी प्रसिद्धः । यथा लोके पक्षसपक्षविपक्षवर्ती कश्चित्पुरुषस्तथा चायमनैकान्तिकत्वेनाभिमतो हेतुरिति । स च द्वेधा निश्चितवृत्तिः शङ्कितवृत्तिश्चेति । तत्र
निश्चितवृत्तिर्यथाऽनित्यः शब्दः प्रमेयत्वाद् घटवदिति ॥३१॥ कथमित्याह
आकाशे नित्येप्यस्य सम्भवादिति ॥ ३२ ॥ . शङ्कितवृत्तिस्तु नास्ति सर्वज्ञो वक्त त्वादिति ॥ ३३ ॥ कुतोऽयं शङ्कितवृत्तिरित्याह
अनैकान्तिकः" इसप्रकार अनैकान्तिक पद का विग्रह है। अर्थ यह हुआ कि जो विपक्ष से व्यभिचरित होता है वह अनेकान्तिक हेत्वाभास है। कोई पूछे कि व्यभिचार किसे कहते हैं ? तो इसका उत्तर यह है कि पक्ष सपक्ष और विपक्ष में रहना व्यभिचार है, जो हेतु पक्ष और सपक्ष में रहते हुए अन्य-विपक्ष में भी जाता है वह व्यभिचारी हेत होता है, जैसे लोक में भी प्रसिद्ध है कि-जो कोई पुरुष अपने पक्ष में तथा सपक्ष में बोलता है और विपक्ष में भी बोलने लग जाता है अर्थात् तीनों में मिला रहता है उसे व्यभिचारी दोगला कहते हैं ऐसा ही यह हेतु अनैकान्तिकरूप माना गया है। इसके दो भेद हैं निश्चित वृत्ति, और शंकित वृत्ति । निश्चित वृत्ति अनेकान्तिक का उदाहरण
निश्चितवृत्तिर्यथानित्यः शब्दः प्रमेयत्वात् घटवत् ।।३१॥
अर्थ-जो निश्चितरूप से विपक्ष में जाता हो वह हेत निश्चित वत्ति अनेकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे-शब्द अनित्य है, क्योंकि वह प्रमेय है, जिसप्रकार घट प्रमेय होने से अनित्य है । यह हेतु व्यभिचरित कैसे होता है सो ही बताते हैं
अाकाशे नित्येप्यस्य संभवात् ।।३२।। अर्थ- यह प्रमेयत्व नित्य आकाश में भी रहता है अतः व्यभिचरित है, शंकित वृत्ति अनेकान्तिक का उदाहरण
शंकितवृत्तिस्तु नास्ति सर्वज्ञो वक्तृत्वात् ।।३३।।
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