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प्रमेयकमलमार्तण्डे वर्तते । सपक्षकदेशे चाकाशादौ वर्तते, न परमाणुषु । विपक्षकदेशे च सुखादी वर्तते न घटादाविति ।
पक्षसपक्षव्यापको विपक्षकदेशवृत्तिर्यथा-गौरयं विषाणित्वात् । विषारिणत्वं हि पक्षीकृते पिण्डे वतते, सपक्षे च गोत्वधर्माध्यासिते सर्वत्र व्यक्तिविशेषे, विपक्षस्य चागोरूपस्यैकदेशे महिष्यादौ वत्तते न तु मनुष्यादाविति ।
पक्षविपक्षव्यापकः सपक्षकदेशवृत्तिर्यथा-प्रगौरयं विषाणित्वात् । अयं हि हेतुः पक्षीकृतेऽगोपिण्डे वर्तते । अगोत्वविपक्षे च गोव्यक्तिविशेषे सर्वत्र, सपक्षस्य चागोरूपस्यैकदेशे महिष्यादौ वर्तते न तु मनुष्यादाविति । __ . पक्षत्रयैकदेशवृत्तिर्यथा-अनित्ये वाग्मनसेऽमूर्तत्वात् । अमूर्त त्वं हि पक्षस्यैकदेशे वाचि वर्तते
रूप से व्यापक है, सपक्ष के एक देश अाकाशादि में तो रहता है परमाणु में नहीं रहता, विपक्ष के भी एक देश स्वरूप सुखादि में रहता और घटादि विपक्ष में नहीं रहता।
पक्ष और सपक्ष में तो व्यापक हो विपक्ष के एकदेश में रहे वह तीसरा अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे-यह पशु तो बैल है क्योंकि सींग वाला है, यह विषाणित्व [सींगवालापन] हेतु पक्षभूत बैल में रहता है, जिसमें गोत्व पाया जाता है ऐसे अन्य सब सपक्षभूत गो व्यक्तियों में रहता है, विपक्षभूत गोत्व से रहित अगोरूप भैंस आदि किसी किसी में वह विषारिणत्व पाया जाता है और अगौरूप अन्य विपक्ष जो मनुष्यादि हैं उनमें नहीं पाया जाता, अतः विपक्षैक देशवृत्ति अनैकान्तिक है ।
पक्ष विपक्ष में व्यापक और सपक्ष के एक देश में रहे वह चौथा अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे-यह पशु आगे है गो नहीं, क्योंकि यह विषाणी है, यह विषाणित्व हेतु पक्षीकृत अगो पिंड में रहता है, [ सींग वाले पशु विशेष में ] अगोत्व का विपक्ष जो गो व्यक्ति विशेष है उसमें सर्वत्र रहता है। [यहां सामने उपस्थित एक पशु को तो पक्ष बनाया है जो कि अगो है। गो व्यक्ति विशेष जो खण्ड मुण्ड आदि संपूर्ण गो व्यक्तियां हैं उन सभी को विपक्ष में लिया है ] इस हेतु का सपक्ष अगो है सो अगोरूप भैंस आदि किसी सपक्ष में तो यह विषाणित्व हेतु रहता है और मनुष्यादि अगो सपक्ष में नहीं रहता, अतः अपक्षक देश वृत्ति कहलाया।
पक्ष सपक्ष विपक्ष तीनों के एकदेश में रहे वह पांचवा अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे-वचन और मन अनित्य हैं, क्योंकि अमूर्त हैं, यह अमूर्त्तत्व हेतु पक्ष के
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