Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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तदाभासस्वरूपविचारः अविद्यमाननिश्चयो मुग्धबुद्धि प्रत्यग्निरत्र धूमादिति ॥ २५ ॥ कुतोस्याविद्यमाननियततेत्याह--
तस्य बाष्पादिभावेन भूतसंघाते सन्देहात् ॥ २६ ॥ मुग्धबुद्धेर्बाष्पादिभावेन भूत संघाते सन्देहात् । न खलु साध्यसाधनयोरव्युत्पन्न प्रज्ञः 'धूमादिरीदृशो बाष्पादिश्चेदृशः' इति विवेचयितु समर्थः ।
अविद्यमाननिश्चयो मुग्धबुद्धि प्रत्यग्निरत्र धूमात् ॥२५।।
अर्थ-जिस हेतुका साध्य साधनभाव निश्चित नहीं किया गया ऐसे हेतु का प्रयोग करना सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास है, अथवा जिस पुरुष ने साध्य साधनभाव का नियम नहीं जाना है उसके प्रति हेतुका प्रयोग करना सन्दिग्धासिद्ध है, जैसे मुग्धबुद्धि [ अनुमान के साध्य-साधन को नहीं जानता हो अथवा अल्प बुद्धि वाला ] के प्रति कहना कि-यहां पर अग्नि है, क्योंकि धूम दिखायी दे रहा है ।
आगे बता रहे कि इस हेतु का निश्चय क्यों अविद्यमान है
तस्य बाष्पादिभावेन भूतसंघाते संदेहात् ।।२६।। अर्थ - उस मुग्धबुद्धि पुरुष को अग्नि पर से उतारी हुई चांवलादि की बटलोई को देखकर उसमें होने वाले बाष्प-बाफ के देखने से अग्नि का संदेह होगा अतः अनिश्चित अविनाभाव वाले हेतु का अथवा अल्पज्ञ के प्रति हेतु का प्रयोग करना सन्दिग्धा सिद्ध हेत्वाभास है ।
भावार्थ-चूल्हा पर पानी चावल डालकर बटलोई को चढ़ाया वहां बटलोई मिट्टी की है अतः पृथिवी, अग्नि, पानी ये तीनों हैं तथा हवा सर्वत्र है इसतरह भूतचतुष्टय का संघात स्वरूप उस बटलोई में पकते हुए चावलों से बाफ निकलती है, बाफ और धूम कुछ सदृश होते हैं अब कोई अल्पज्ञ पुरुष है उसको किसी ने कहा कि यहां सामने अवश्य अग्नि है, क्योंकि धूम दिख रहा है, उस वाक्य को सुनकर उक्त पुरुष संदेह में पड़ जायगा क्योंकि वह साध्य साधन के भाव में प्रथम तो अव्युत्पन्न है तथा धूमादि तो इसतरह का होता है और बाष्प इसतरह का होता है ऐसा विवेचन करना उसके लिये अशक्य है।
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